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Wednesday 14 October 2020

फुर्सत के क्षण (आलेख) - सुनील कुमार माथुर

फुर्सत के क्षण
(आलेख)
कामकाजी , मैहनती , कलाप्रेमी बालिकाएं व महिलाएं फुर्सत के समय केवल बेकार की गपशप कर अपना कीमती समय बर्बाद न करें अपितु इस खाली समय में बैठकर वे कढाई - बुनाई  , कसीदाकारी  , पेंटिंग, सिलाई - बुनाई कर समय का सदुपयोग कर सकती है 

प्राचीन समय में घूंघट प्रथा के चलने के बावजूद भी महिलाएं व बालिकाएं घर के कामकाज से निपटने के बाद फुर्सत के समय में फालतु न बैठकर इस अमूल्य समय में वस्त्रों पर कढाई  , कुर्ते पर सुन्दर डिजाइन, पर्दे  , मेजपोश , टी वी कंवर, तकिये की खोली पर कसीदाकारी, आइल पेंट से ड्राईग रूम की दीवारों, कमरे की छत , मकान की फर्श पर भी नयनाभिराम सरल , सुन्दर व आकर्षक बेले , पेंटिंग व नाना प्रकार की डिजाईन का कार्य करती थी । वहीं ओढनी पर भी अपनी कला दिखाकर उस पर चार चांद लगाती थी व मन पसंद धागे से कढाई करती थी ।

मगर आज समय बदल गया हैं । कई परिवारों में घूंघट प्रथा खत्म हो चुकी है और स्त्री व पुरूष दोनों आज नौकरी पेशा हो गये हैं । पति - पत्नी दोनों कमाते है । धन की कोई कमी नहीं है । आज बाजार में हर चीज उपलब्ध हैं बस पैसा फैको और तमाशा देखों की कहावत चरितार्थ हो रही हैं । 

पैसे के अंहकार ने बाजार में हर चीजों के दाम बढा दिये है । पांच रूपये की वस्तु आज बाजार में सौ रूपये में बेची जा रही हैं । इससे पैसे वालों पर कोई फर्क नहीं पडता है लेकिन गरीब  व मध्यम वर्गीय परिवार के लिए समस्या पैदा हो जाती हैं और बाजार में एक बार दाम बढ जायें तो फिर कम होने के कोई आसार नहीं है ।

बढती मंहगाई का एक कारण यह हैं कि आज कामकाजी महिलाएं मेहनत से जी चुराती हैं । वे कढाई  - बुनाई  , कसीदाकारी, पेंटिंग के बजाय क्लब संस्कृति को अपना रही हैं जहां केवल गपशप व खाना पीना व एक - दूसरे की खीचतान के आलावा कुछ नहीं है और पैसे की बर्बादी आलग से ।

ऐसी महिलाओं का तर्क है कि जब बाजार में सभी चीजें आसानी से उपलब्ध है तो यह सिर दर्द क्यों मोल ले । लेकिन वे यह भूल जाती हैं कि हम अपने हुनर का गला घोट रहें है । जबकि जरूरत इस बात का हैं कि इस प्रतिस्पर्धा के युग में आप अपने हुनर व प्रतिभा को निखारे । अपने हाथों से बनाई कलाकृति, डिजाइन, पेंटिंग, कसीदाकारी, कढाई- बुनाई का अपना एक अलग ही महत्व है । 

चूंकि इससे मन में प्रसन्नता का भाव आता हैं । कला में निखार आता हैं । अपनी चार सखी सहेलियों को बताने से हमें भी चार नई बातें जानने को मिलती हैं । अतः फुर्सत के समय का सदुपयोग करनें के कार्य की शुरुआत अपने घर से कीजिए व फिर आडौस पडौसी की जोडिये एवं फिर समूह बनाकर अपना कारोबार शुरू कर आत्मनिर्भर बनें । 

कार्टूनिस्ट चाॅद मोहम्मद घोसी ने मेहनती , कामकाजी व कलाप्रेमी बालिकाओं व महिलाओं के लिए सरल , सुन्दर व आकर्षक बेले, फैब्रिक पेंटिंग, आइल पेंटिंग, गले के लिए कुर्ते पर सुन्दर डिजाइन, वस्त्रों पर नमूने के अनेक डिजाइन बनाकर देश भर में की पत्र - पत्रिकाओं में अपने डिजाइन भेज कर बालिकाओं व महिलाओं के लिए रोजगार का रास्ता खोल कर एक सकारात्मक सोच आज से करीब चार दशक पूर्व शुरू की थी वह आज भी  लगातार जारी हैं । बस जरूरत है बालिकाएं व महिलाएं फुर्सत के समय का सदुपयोग करें और इसे आत्मसात कर आत्मनिर्भर बनें ।
-०-
सुनील कुमार माथुर ©®
जोधपुर (राजस्थान)

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