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Wednesday, 14 October 2020

सुदर्शन चक्र उठाने की (कविता) - अजय कुमार व्दिवेदी

 

सुदर्शन चक्र उठाने की
(कविता)
सत्ता को दोषी कहने और पुलिस को गाली देने से।
नहीं मिलेगा इंसाफ तुम्हें यूं अबला बनकर रोने से।

संविधान लिखने वाले ने कसर नहीं कुछ छोड़ी थी।
लगता है अपराधियों के साथ में उसकी अच्छी जोड़ी थी।

कानून बनाया इतना गन्दा न्याय तुम्हें मिले कैसे।
जब अपराधी घुमें बाहर तो फूल कहीं खिलें कैसे।

क्यूँ हाथों में पोस्टर लेकर सड़कों पर निकलते हो।
उन्हीं हाथों से खुद तुम न्याय क्यूँ नहीं करते हो। 

बलात्कार जैसी घटनाओं पर भी राजनीति करने वालों। 
जात पात के नाम पर अक्सर एक दूजे से लड़ने वालों। 

जात धर्म के नाम पर शहर जला देते हो तुम। 
फिर क्यूँ नहीं ऐसे कुकर्मी को जड़ से मिटा देते हो तुम। 

जिस राज्य का राजा अन्धा हो वहां दुर्योधन शीष उठाता है। 
भरी सभा में द्रौपदी का वस्त्र हरण करवाता है। 

भीष्म पितामह जैसे ज्ञानी जहाँ मौन रह जाते हो। 
कृपाचार्य और गुरू द्रोण एक शब्द नहीं कह पाते हो।

उस सभा में है जरूरत सुदर्शन चक्र उठाने की।
ना की नपुंसकों भाँति सबके मौन रह जानें की।
-०-
अजय कुमार व्दिवेदी
दिल्ली
-०-


***
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