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Friday, 6 November 2020

मेरे हमसफ़र (कविता) - श्रीमती कमलेश शर्मा


मेरे हमसफ़र 
(कविता)
मैं ओर तुम,
कभी इक दूजे से अनजान,
ना जान ना पहचान,
किन शब्दों में करूँ बयान।

अब ये रिश्ता,जन्म जन्म का,
सजनी सजन का,
रब ने गढ़ा तुम्हें मेरे लिए,
सोंप दी तुम्हें,
जीवन की डोर,सदा के लिए।
ना करना कभी विश्वासघात,
करती हूँ अटूट विश्वास,
चलेंगे साथ साथ,
तय करने को जहाँ के फ़ैसले,
पस्त ना होने देंगे होसले,
भले ढा ले सितम समय हम पर,
दिखा कर अदम्य साहस ,
होसलों की उड़ान,
थकना नहीं है हमें,
रख कर होंठों पे मुस्कान,
चलते रहेंगे  हाथ थाम कर,
मनाते रहेंगे,शादी की वर्षगाँठ,
ना आने देंगे आँच,
दोड़ते रहेंगे,मिला क़दम से क़दम,
ए मेरे दोस्त,मेरे हमदम।
कहना चाहती हूँ ,एक मन की बात ,
कोई बात बिगड़ने से पहले,
थाम लेना मेरा हाथ,
रहेंगे हम साथ साथ,
इस जन्म ,उस जन्म,हर जन्म,
ए मेरे हमसफ़र, मेरे हमदम।
-०-
पता
श्रीमती कमलेश शर्मा
जयपुर (राजस्थान)
-०-



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1 comment:

  1. बाह! क्या बात है, हार्दिक बधाई है मैम!

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