आज का अर्जुन
(लघुकथा)
द्रोणाचार्य पांडव और कौरव राजकुमारों के संग राजधानी श्रीनगर में एक विशेष शिविर के आयोजन को लेकर पहुंचे थे, जहां कडा़के की ठंड पड़ रही थी। द्रोणाचार्य ने चिनार के ऊंचे पेड़ पर, एक माटी का कृत्रिम पक्षी बनाकर रख दिया था। और बारी-बारी से सभी नन्हे राजकुमारों से निशाना लगवाते रहे। मगर, किसी ने भी द्रोण के प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर नहीं दिया। क्योंकि, किसी को भी कृत्रिम पक्षी दिख ही नहीं रहा था। तभी द्रोणाचार्य ने धृतराष्ट्र के श्रेष्ठ पुत्र दुर्योधन को बुलाकर उस पेड़ पर कृत्रिम पक्षी के बारे में पूछा की 'दुर्योथन! तुम्हें पेड़ पर क्या दिखाई दे रहा है', तो दुर्योथन ने हंसते हुए कहा- " गुरुदेव! मुझे तो पेड़ पर कोई पक्षी नजर नहीं आ रहा है। हाँ...! पेड़ के पीछे मुझे बर्फ की पहाड़ियां दिख रही है, जहां कुछ पक्षी उड़ रहे हैं"
फिर द्रोण ने पूछा- " दुर्योधन, क्या तुम्हें पहाड़ियों के पीछे भी कुछ दिख रहा है?"
" हांँ! गुरुवर मुझे, पहाड़ियों के पीछे पाकिस्तान का झंडा दिख रहा है" दुर्योधन ने उत्साहित होकर कहा।
" ठीक है! अब तुम जाओ?" दुर्योधन के जाने के बाद द्रोणाचार्य ने अपने सबसे प्रिय शिष्य अर्जुन को बुलाकर पूछा- " अर्जुन! तुम्हें क्या इस पेड़ पर कोई पक्षी दिख रहा है?"
अर्जुन ने सबसे पहले द्रोण के पैर छुए और पेड़ पर धनुष से निशाना लगाकर कहा- " गुरुवर, मुझे माफ करें? क्योंकि पेड़ पर कोई कृत्रिम पक्षी है ही नही! बल्कि पेड़ के डाल पर अपने देश का राष्ट्र ध्वज लगा है। और बर्फ से दबी पहाड़ियों के पीछे पाकिस्तान में भी मुझे तिरंगा लहराता दिख रहा है " अर्जुन के सार्थक उत्तर से द्रोणाचार्य स्तब्ध थे और संतुष्ट भी...!
-०-पता:
बजरंगी लाल यादव
बक्सर (बिहार)
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