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Saturday 26 December 2020

चलो कुछ अच्छा करते हैं.. (कविता) - गोविन्द सिंह चौहान

 

 चलो कुछ अच्छा करते हैं..
(कविता)
चलो कुछ अच्छा करते हैं,
चेहरों की हटे उदासी  दिल में, वो हँसी भरते हैं।
सन्तुष्ट जीवन जीने का पाठ पढ़ लें वरना,
चेतना शून्य होते मानवता के रिश्ते,
खबर बनते हैं।

एक करोड़ो का मालिक बेचारा बाप,
पुत्र की चाह का मारा बेघर बेसहारा हो जाता है,
झरते आँसुओं में रिश्तों के दर्द बह जाते हैं।
चलो कुछ अच्छा करते हैं,
चेहरों की हटे उदासी दिल में, वोहँसी भरते हैं।

दूसरा किस्सा और भी शर्मसार कर जाता है।
एक अरबपति महिला का तन,       बनके कंकाल रह जाता है।
सभ्य समाज में एक फ्लेट ही, शवगृह बन जाता है।
माँ की मृत्यु के सालभर बाद सपूत घर आते हैं।
चलो कुछ अच्छा करते हैं,
चेहरे की हटे उदासी दिल में , वो हँसी भरते हैं।

 बात जो हर युवा को समझाती है,
सास-बहु के झगड़े में पति की बलि हो जाती है।
अधिकारी की मौत, बिखरते रिश्तों,
की कथा बन जाती है।
परिवार-बीवी के बीच तनाव मौत की रेखा बन जाती है 
रिश्ते  रेल की पटरी पर आकर आत्महंता हो जाते हैं।
चलो कुछ अच्छा करते हैं,
चेहरे की हटे उदासी दिल में, वो हँसी भरते हैं।

पद,पैसा ,प्रतिष्ठा, शक्ति संकलन,
अहंकार जीवन को खुश नहीं रखते,
समझते है सब सच अपना- अपना
फिर मानव ,जीवन को शांत क्यूँ नही रखते?
चलो कुछ अच्छा करते हैं
चेहरे की हटे उदासी दिल में, वो हँसी भरते हैं।
 विश्वविजेता शूमाकर
 जिन्दगी  की जंग लड़ता है,
पत्नी की सम्पति सारी बेचकर 
डॉक्टरी ईलाज का बिल भरता है।

जीवन के छोटे प्रवास में कैसे-कैसे सबक मिलते हैं
इंसा नफरत और धर्म में क्यूँ झुझते हैं
चलो कुछ अच्छा करते हैं
चेहरे की हटे उदासी दिल में, वो हँसी भरते हैं।

रूपया जरूरत तो है,खुद हाथों, खर्च नहीं करता है।
घर-परिवार और दोस्तों से, जीवन बनता है।
भाग्य का एक हस्तक्षेप सब कुछ 
बदल देता है।
संग्रही संपत्ति, समस्याओं से निपटना पड़ता है
वस्तुओं सा मानव नगण्य,शक्तिहीन बनता है।
जी लो जी भर आज के पल, कल कभी नहीं बनते हैं।

चलो कुछ अच्छा करते हैं...
चेहरों की हटे उदासी दिल में, वो हँसी भरते हैं...  
-०-
गोविन्द सिंह चौहान
राजसमन्द (राजस्थान)


-०-

***
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