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Saturday, 26 December 2020

इस जिंदगी का कितना गुमान है (कविता) - लखनलाल माहेश्वरी


इस जिंदगी का कितना गुमान है

(कविता)
तेरी जिन्दगी का तुझे कितना गुमान है 
चार दिन की है जिन्दगी क्या शान है 
इस शान में कितना तेरा सममान है 
खत्म हो जायेगी यह जिन्दगी क्या गुमान है। ।तेरी जिन्दगी,,,,,,
इस माटी के पुतले पर इतना गुमान न कर 
तेरी क्या ओकात है कितनी क्या शान है 
खत्म हो जायेगी यह जिन्दगी 
चार दिन का मेहमान है। ।तेरी जिन्दगी,,,,,,,,,
यहाँ सब पराये है अपना कोई नहीं है 
मौत से आज तक बच न पाया कोई है 
तू समझता नहीं कैसा तू इन्सान है 
माटी के पुतले तेरी क्या शान है। । तेरी जिन्दगी,,,,,,,,,
जो दुनियां हंसीन नज़र आ रही है 
तेरी औकात को न समझ पा रही है 
यह जवानी तेरी रहने वाली नहीं है 
सब खाक हो जायेगी तेरी जिन्दगानी है ।।तेरी जिनदगी,,
जो कमाया जिन्दगी में सब भूल जायेगा 
चार दिन तेरी याद आयेगी फिर भूल जायेंगे 
प्रेम लखन कहे अब तो सम्भल जा 
अब तो हरि मिलन को तैयार हो जा। । तेरी जिन्दगी,,,,,,
-०-
पता:
लखनलाल माहेशवरी
अजमेर (राजस्थान)

-०-


***
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1 comment:

  1. हार्दिक बधाई है आदरणीय !

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