किसान पर दोहे
(दोहे)
जिसके श्रम बल से मिले, सबको रोटी-दाल ।
उसकी खाली थालियाँ , काटें रोज बबाल ।।-1
जिसके श्रम से भूख का, मिट जाता संत्रास ।
भूख, गरीबी, बेबसी, हरदम उसके पास ।।-2
जिसके श्रम से खा रहा , खाना हिन्दुस्तान ।
होगा उसकी भूख का, संसद को कब ज्ञान ।।-3
स्वेद, रक्त से सींचकर , खेती करे किसान ।
मिला नही श्रम का कभी,उसे उचित सम्मान ।।-4
गर्मी, पावस, शरद में , पाये कष्ट तमाम ।
दे न सकीं ये नीतियां,हलधर को आराम ।।-5
कह आराम हराम है ,श्रम को पूजा मान ।
करे किसानी खेत में , आधा हिंदुस्तान ।। -6
जब सोता सुख - चैन से, पूरा हिंदुस्तान ।
तब सरहद पर घूमता , सारी रात जवान ।।-7
खा - पी सोता चैन से , पूरा हिन्दुस्तान ।
पेट देश का भर रहा,निर्धन आज किसान ।।-8
सजीं मेज पर थालियाँ, महक रहे पकवान ।
लगे अन्नदाता बिना, घर-घर में रमजान ।।-9
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