"पथ नहीं भूली"
(आलेख)
मेरे जीने का अंदाज़ जुदा है सबसे मेरे न्यायाधीश ना बनों, मेरी किस्मत का फैसला करने का हक मैंने किसीको नहीं दिया।
मैं अपने नियम खुद बनाती हूँ जो मैं खुद तोड़ती हूँ, जोड़ती हूँ, मोड़ती हूँ, मेरे उन्मीलन गन्तव्य में अर्गला ना बनों।
मेरी ज़िंदगी मेरी खुद की है तो आधिपत्य किसी और का क्यूँ हो, मैं अपनी शर्तो पर जीती हूँ, हर लम्हे को जी भरकर आनंद लेती हूँ, तो मेरी इर्ष्या क्यूँ ?
अपने सुख दु:ख में लीन हूँ किसी मोहरे की मोहताज नहीं, खुद पर शासन करना जानती हूँ, मेरे विचार से तुम्हारे विचार कतई नहीं मिलते ना मिलेंगे।
महिला और पुरुष के बीच दोहरा मानक क्यूँ? इस मानसिकता के तद्दन ख़िलाफ़ हूँ , हम सब इंसान है ना कोई मजबूत, ना कोई कमज़ोर है।
हाँ मैं जानती हूँ पुरुष की आँखों में आँखें डालकर बात करना, उनके कदमों संग मक्कम अपने कदम मिलाना, मर्द की आशक्त नहीं मैं सबको अपना आशक्त करना जानती हूँ।
मैं एक कुशल, आत्मनिर्भर और हवाओं के खिलाफ़ चलने वाली नारी हूँ, अवनीत की आदत नहीं पूर्णत: खिलना जानती हूँ ।
एक हुनरबद्ध प्रेमिका अपने खुद के प्रेम में व्यस्त हूँ, शलभ हूँ अपनी जीवन शमा की मेरा आंकलन मत करो
में किसीकी सोच की कठपुतली नहीं,
अपने साम्राज्य की रानी हूँ, मुझे समझो मैं आज की नारी हूँ।
-०-
No comments:
Post a Comment