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Saturday, 12 December 2020

चुलबुल ,चंचल, नटखट , बचपन (कविता) - सुरेश शर्मा

चुलबुल ,चंचल, नटखट , बचपन 
(कविता)

चुलबुल ,चंचल, नटखट , बचपन ,
अठखेलियां खेलने की  जिद करता है ।
कभी  तिलचट्टे से, कभी चींटियों से ,
कभी मक्खी तो कभी मधुमक्खियों से ;
युद्ध  करने की हठ करता है ।

चुलबुल, चंचल, नटखट, बचपन ,
अजब गजब का खेल खेलता है ।
कभी पेड़ो पर  लटके बंदरों की तरह ,
कभी पंजों के बल बिल्ली की तरह ;
तो कभी छाती के बल छिपकली की तरह ,
उल्टे  सीधे हरकत करता है ।

चुलबुल, चंचल, नटखट, बचपन ,
अजीबोगरीब कामो में मस्त रहता है ।
नेहरू जी के लाल गुलाब को ,
कभी  काला तो कभी नीला ;
बनाने का काम मन करता है ।
कभी  कभी  तो ,
बापू जी के  चिकने सर पर ;
बाल उगाने का भी  दिल करता है ।
-०-
सुरेश शर्मा
गुवाहाटी,जिला कामरूप (आसाम)
-०-

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स्पंदित कविता (कविता) - डॉ. कुमुद बाला मुखर्जी

 

स्पंदित कविता
(कविता)
द्रवित ,संवेदित हृदय की कल्पना से , स्पंदित कविता होती है मुखरित
संवेदना की बारिश में अक्षरों की , प्रार्थना होती है अंकुरित
शब्दों की डोली उतरी पनघट पर
परछाई से रस्ता रही थी पूछ
उजाले को लीलता अंधियारा
परछाई जाने कहाँ गयी कूच
भटके शब्दों में फिर से जंग छिड़ी
अफरा - तफरी और मच गई लूट
बिछड़े अपने संगी और साथी
थे मेले - रेले सब पीछे छूट
भेजें कहाँ शब्द मधुर पाती , ऐसे अश्रु की दुनिया होती है विकसित
द्रवित ,संवेदित हृदय की कल्पना से , स्पंदित कविता होती है मुखरित 38

लताओं - वल्लरियों की गुपचुप बातें
हों शब्दों की आंखमिचौली जैसे
अँखियाँ दोनों सुख - दुख में भींगी
कौन समझे औ समझाये कैसे
गम की है झीनी - झीनी चदरिया
अब नेह निमंत्रण पढ़े वह कैसे
यही  विडंबना रही हमारी भी
रिश्तों पर आखिर बोलें तो कैसे
भ्रम में क्षितिज छूने की चाहत , किसलय से किरण होती है अनुबंधित
द्रवित ,संवेदित हृदय की कल्पना से , स्पंदित कविता होती है मुखरित

अक्षरों का हो जब मुखरित अंकुरण
शब्द -शब्द खिल उठते उमंगित होकर
मीठे - रसधारे शब्दों को गुन कर
चटखते पल्लव पे तरंगित होकर
राग - रागिनियाँ झंकृत होतीं जब
दो ज्ञान के चक्षु हर्षाते खुल कर
बातें करतीं ऋचाएँ कलियों से
फूलों से मिलतीं हँस - विहँस कर
यूँ ही रचती मधुशाला - कादंबरी , प्रेमाग्नि होती है सुप्रज्जवलित
द्रवित ,संवेदित हृदय की कल्पना से , स्पंदित कविता होती है मुखरित
-०-
पता:
डॉ. कुमुद बाला मुखर्जी
हैदराबाद (तेलंगाना)
-०-

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अनुबंध (कविता) - अर्विना

 


अनुबंध
(कविता)
जीवन पर्यन्त तक अनुबंध 
सुख दुःख की अनुभूति संग
कभी शिकवा न शिकायत 
तुम नील वर्ण हम गौर ‌
जौड़ी जैसे चांद चकोर 
अनुराग भरा घट लिए 
उड़ेलते रहते हर पल
अनुभूति सुखद एहसास से
सराबोर हो कट रही जिन्दगी
कब सुबह हुई कब सांझ
पता ही नहीं चला अबतक
ज्यों इबारत लिखी गई हो 
दीवारों पर दस्तावेज की तरह
जिसे आकर कोई पढ़ लेगा 
करेगा याद हमारे अनुराग के 
जीवन पर्यन्त तक अनुबंध  
सुख दुःख की अनुभूति संग 
-०-
पता:
अर्विना
प्रयागराज (उत्तरप्रदेश)
-०-

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ग़रीबी और शहरी गरीबी क्या हैं (आलेख) - रेशमा त्रिपाठी

  

ग़रीबी और शहरी गरीबी क्या हैं
(आलेख)
ग़रीबी वह हैं जिसमें व्यक्ति के दैनिक जीवन निर्वाह के लिए बुनियादी जरूरतों की पूरा न कर पाने वाली स्थिति उत्पन्न होती है यह गरीबी किसी भी गांव के भूमिहीन श्रमिकों मजदूरों की शहरों में भीड़ भरी झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोगों की भी हो सकती हैं और उनकी भी को काम की तलाश में लाखों की संख्या में गाॅ॑व से शहर पलायन करने को मजबूर होते हैं इसका मुख्य कारण हैं जरूरत के मुताबिक भोजन, कपड़ा, मकान, गाॅ॑वों में बेसिक सुविधाएं जैसें सड़के,पानी,बिजली,उचित शिक्षा,रोजगार,सामाजिक भेदभाव होने के कारण सामान्यतः  उपलब्ध नहीं हो पाता हैं यहीं कारण हैं अधिकतर लोग शहरों की ओर पलायन करने को विवश होते हैं । माना जाता हैं कि एक गाॅ॑व या एक नगर का हर चौथा व्यक्ति इस गरीबी की श्रेणी में आता हैं जो रोजमर्रा की जिंदगी से रोटी के लिए जूझता हैं इनमें वैसे लोगों की संख्या अधिक हैं जो अधिकतर अनपढ़, अल्प साक्षर हैं ज्यादातर लोगों का मानना हैं कि यह मलिन बस्तियों के शहरी गरीबी की श्रेणी में आते हैं यह दैनिक वेतन भोगी या अल्प आमदनी के लोग भी हो सकते हैं इनमें बाल श्रमिक की संख्या ज्यादा होती हैं जो कम उम्र में चाय के ढांबे पर, जूता पॉलिश करने,कंपनियों में, कारखानों में काम करने वाले दिहाड़ी मजदूर के रूप में होते हैं । साथ ही भिखारी, खाना बनाने वाले,घर– घर कूड़ा उठाने वाले लोग भी हो सकते हैं । शहरों में असंगठित क्षेत्र के लोग गरीब वर्ग में आते  है जिन्हें भारत सरकार ने चार भागों में विभक्त किया है–व्यवसाय, रोजगार की प्रकृति, विशेष रूप से, पीड़ित श्रेणी एवं सेवा श्रेणी के लोग आते हैं । जिसमें कुल भारतीय कार्यबल के लगभग 90% औपचारिक क्षेत्र के गांव में खेती करने वाले लोग, सब्जी बेचने वाले, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई करने वाले, निर्माण कार्य  करने वाले श्रमिक संघ के लोग आते हैं । रोजगार की प्रकृति में प्रवासी मजदूर, बन्धुआ मजदूर, दैनिक मजदूर आते हैं विशेष एवम् पीड़ित श्रेणी में दिहाड़ी मजदूर, बोझा ढोने वाले मजदूर,महिला मजदूर और अन्य काम करने वाले श्रमिक आते हैं असंगठित मजदूरों के बीच गरीबी और शहरी गरीबी के बीच गरीबी उन्मूलन एक सेतु का काम करती हैं इन सभी क्षेत्रों के निर्माण कार्य अनौपचारिक रूप से किए जाते हैं । यही गांवों से शहरों में पलायन का मुख्य कारण हैं किन्तु हाल ही यह पलायन शहरों से गांवों की ओर देखने को मिला इसका मुख्य कारण कोविद– 19 वायरस हैं जिससे पूरा विश्व प्रभावित हुआ हैं किन्तु सबसे अधिक श्रमिक वर्ग को इसका प्रभाव झेलना पड़ा है हालांकि सरकार सभी सुविधाएं मुहैया कराने का अथक प्रयास कर रही हैं किन्तु दैनिक वेतन भोगी श्रमिक वर्ग जिसे पीने का पानी भी सामान्यतः उपलब्ध नहीं हो पाता वह कई बार हाथ कैसे धुले,सेनिटाइजर ,मास्क जो कि मुख्य सुरक्षा कवच हैं वह कैसे मुहैया हो खास कर उसे जिसे भोजन एक समय का ठीक से नसीब नहीं होता हो ..उसके पास पलायन के सिवा दूसरा कोई विकल्प भी क्या हो सकता हैं  बहरहाल पूरे देश में 21 दिनों के बंद के सबसे ज्यादा तकलीफ देश दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों को झेलनी पड़ रही हैं। फैक्ट्री बंद होने से काम न मिलने के कारण मजदूर मजबूरन भूख से या आत्महत्या करने को मजबूर हैं । बड़ी संख्या में मजदूरों ने एक राज्य से दूसरे राज्यों की ओर, अपने घर की तरफ पलायन कर दिया इससे कई मजदूरों को अपनी जिंदगी से भी हाथ धोना पड़ा साथ ही संक्रमित लोगों की चपेट में आने का खतरा बढ़ गया । सरकार ने पूरे देश में 21 दिन का सम्पूर्ण लॉकडाउन तो कर दिया, मगर इंतजाम देखकर लगता हैं कि सरकार ने गरीब मजदूरों के बारे में विचार नहीं किया। और यदि विचार किया भी तो कोई ठोस नीति नहीं अपना पाई  यही वजह हैं कि लाखों की तादाद में गरीब मजदूर महानगरों से अपने घर की ओर पलायन करने को मजबूर हैं। गरीब कामगारों के गांवों की पलायन की स्थिति भयानक रूप में देखने को मिली हैं आज देश का दैनिक वेतन भोगी दो जून की रोटी के लिए तरस रहा हैं ।सरकार को इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि आखिर क्यों लाखों की तादाद में लोग शहरों से गांवों की और गांवों से शहरों की ओर पलायन करने को बाध्य हो जाते हैं इसके लिए ठोस आधार भूत स्तंभ क्या– क्या हो  सकते हैं । निश्चित रूप से यदि सरकार गांवों के परिवेश में विचार करें जैसे  उच्च शिक्षा संस्थान, रोजगार हेतु कम्पनियों,कारखानों का निर्माण,सड़क,बिजली,पानी की समुचित व्यवस्था ,कृषि , स्त्री शिक्षा पर विशेष बल , बच्चों की शिक्षा, जनसंख्या वृद्धि पर रोक आदि बिंदुओं पर यदि सारगर्भित विचार कर कार्य को क्रियान्वित करें तो निश्चय ही गरीबी कि दशा में सुधार होगा और इस तरह किसी संक्रमण काल में पलायन की भयावह स्थिति देखने को नहीं मिलेगी यकीनन ....यह महामारी का दौर गरीब तबके के लोगों के लिए एक अभिशाप के रूप में आया हैं  जो कि बेहद चिन्ता जनक  विषय है..।।
-०-
रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

-०-

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Wednesday, 9 December 2020

सफलता क्या है? (आलेख) - धीरेन्द्र त्रिपाठी

 

सफलता क्या है?

(कविता)

जब हम, आप जन्म लेते हैं उसके कुछ समय पश्चात ही हमें सफलता नामक शब्द का ज्ञान अकारण, अकस्मात हो जाता है ।
न केवल हम वरन हमारे आसपास ,समाज व हर वर्ग , हर पीढ़ी इस सफलता नामक शब्द अथवा चिड़िया या जो भी आप कह ले उसके पीछे भागती रहती हैं किंतु सफलता का क्या आशय है? सफलता का क्या अर्थ है? यह हमें जाना और समझना बेहद आवश्यक हैं ।
सफलता का आशय लक्ष्य संधान अथवा किसी वस्तु की प्राप्ति से नहीं है अपितु सफलता का आशय स्वयं को आनेवाले कल में आज से बेहतर पाना है । 
किंतु आज की युवा पीढी सफलता के लिए कुछ भी कर सकने का जुनून रखते हैं किन्तु सफलता को कैसे प्राप्त किया जाए स्वयं को आज से बेहतर आने वाले कल में कैसे पाएं इसके लिए कुछ तथ्यों को जानना अथवा समझना अति आवश्यक है अथक प्रयासों के बाद अध्यात्म के आधार पर मनोवैज्ञानिक तर्कों के आधार पर सफलता के चार प्रमुख साथी (सूत्र )बताने का प्रयास किया गया है जो निम्न हैं 

1. परिवारिक स्थिति - हमारे सफलता के सबसे बड़े सहायक के तौर पर हमारे परिवार की स्थिति ही निकल कर सामने आती है। यहां पर पारिवारिक स्थिति का आशय आर्थिक स्थिति से लगाना न्याय संगत नहीं होगा, आपके पास ऐसे कई उदाहरण भरे पड़े है की परिवार आर्थिक रूप से सम्पन है किंतु पुत्र किसी कार्य का नही, आप ऐसा कोई उदाहरण नही दे सकते कि इस व्यक्ति के पिता बहुत ही पैसे वाले थे तो वह व्यक्ति बहुत महान हुआ।हमारे राष्ट्र और विश्व की महान हस्तियां जो सम्मान की दृष्टि से देखी जाती है उनका परिवार आर्थिक रूप से बहुत सक्षम नहीं था।परिवारिक स्थिति का अर्थ परिवार की अर्थ, समाज, शिक्षा, एवं संगत ,रिश्ते से है ।हमारे सफलता में परिवार का सहयोग सर्वप्रथम माना जाता है दूसरा स्थान आता है हमारे मित्रवत व्यवहार अथवा मित्र समूह का जो हमारे लिए एक वातावरण तय करते हैं। हमारे परिवार की आर्थिक स्थिति हमारे कार्य में बाधा बने न बनें किंतु हमारे परिवार की शैक्षिक स्थिति , हमारे रिश्तेदार , मित्रों का दृष्टिकोण हमारे सफलता के सबसे बड़ा सहायक होता है । अतः हमें अपने कार्य के लिए किसी भी व्यक्ति की टिप्पणी पर ध्यान ना देकर सबसे मधुर संबंध रख सफलता के लिए आगे बढ़ना है। सफलता के लिए अपने परिवार का साथ कितना आवश्यक इसके लिए हमें यह प्रसंग अकारण ही स्मरण हो जाता है जब राम ने रावण का वध किया तब शरीर त्यागने से पहले राम जी ज्ञान लेने के लिए रावण के पास गए तो रावण ने राम की जीत का सबसे पहला कारण यही बताया कि उनका भाई अर्थात उनका परिवार उनके साथ हैं और उसका भाई अर्थात उसका परिवार उसके विरुद्ध खड़ा है ।अतः हमें अपने परिवार को सफलता की सबसे बड़े पूरक तौर पर ही देखना चाहिए । 

2. समय - समय जीवन का वह कारक जिससे सफलता को असफलता और असफलता को सफलता में बदला जा सकता।यदि मनुष्य समय का भरपूर उपयोग करना शुरू कर दे,तो उसका मोल समय के मोल के बराबर हो जायेगा। समय को व्यर्थ गवाने से अथवा समय के साथ न चलने से हमारी कई शक्तियां, प्रतिभा, गुण स्वतः समाप्त हो जाते है।यदि समय समय पर इनका उपयोग किया जाए तो समय के साथ इनमें निखार आता है।हमें यह तय करना अत्यंत मुश्किल होता है कि कब,किसे और कैसे तथा क्यों समय देना है? मैंने अपने स्वयं के अध्यन में जो तथ्य पाया है,वह यह कि स्वयं को समय देना ही सबसे अचूक प्रयोगों में से एक है। यह प्रयोग कभी भी निष्फल नही होता है।हमें स्वयं को समय कैसे देना है,यह बात हमारे कौशल और सामाजिक परिवेश पर निर्भर करता है। हमे अपने अध्धयन और अपने समाज तथा अपने परिवार एवम राष्ट्र के मूलभूत तथ्यों को समय देना है,यह हमें अपने विवेक से तय करना है कि हम समय को कैसे भूनते है।जो व्यर्थता से परे होकर समय को भुनाने में सफल होता हैं, वह समय पर सदैव के लिये अपने मेहनत को स्थापित कर देता है,जिससे वह समय के साथ स्वयं को बेहतर पाता है और जैसा कि मैंने पहले ही लिखा है समय के साथ स्वंय को बेहतर बनाना ही सफलता है।

3. अध्यन - यह एक ऐसा सूत्र है,जिसका प्रयोग आजतक कभी भी निष्फ़ल नही हुआ। अध्य्यन का अर्थ,बहुत से लोग केवल पुस्तक पढ़ने से लागते है,किंतु अध्ययन का अर्थ- अपने भूत,वर्तमान और भविष्य के तथ्यो को मनोनयन करते हुए उनकी समीक्षा करने की क्षमता अध्य्यन है। हम इस बात को भी नकार नही सकते कि हमारे अध्ययन के सबसे बड़े सहायक पुस्तक है, किन्तु पुस्तकों के अध्ययन के पश्चात हम जो अपने निजी अनुभव वर्तमान में डालकर अपने भविष्य की कल्पना कर ,भविष्य को सुगम एवम उत्तम बनाने के प्रयास करते है,तब हमें अध्ययन का सही अर्थ पता चलता है।अब हमें अध्यन क्या करना है इस बात पर चर्चा कर लेते है, हमें हमेशा स्वयं का अध्ययन करना है।अब आप कहेंगे कि स्वयं के बारे में क्या अध्ययन हमें अपने बारे में सब पता है।किंतु यहां स्वयं का अर्थ स्वयं का इतिहास,स्वयं की संस्कृति, सभ्यता,स्वयं की पुरातन व्यस्था एवम वर्तमान तथा स्वयं के बुजुर्गों का विकास एवं अपना वर्तमान तथा आने वाले स्वयं के भविष्य का अध्धयन करना ही स्वयं का अध्ययन करना है। जिस मनोविज्ञान को हम सब सफलता का एक बड़ा साधन मानते है उस मनोविज्ञान का अर्थ ही स्वयं का अध्ययन है। हमें अध्ययन का क्या लाभ है यह स्वामी विवेकानंद के जीवन चरित्र को जाना जा सकता है।

4. दृष्टिकोण - हमारे जीवन में हमारे दृष्टिकोण का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है,हमारा दृष्टिकोण सीधा हमारे मनोदशा पर प्रभाव करता है।यदि हम नकारात्मक दृष्टिकोण रखते है तो हमें सब तथ्य ग़लत और अंसभव नज़र आता है और वही हम जब सकारात्मक दृष्टिकोण हो, सब अच्छा और सम्भव नज़र आता है। सकारात्मक दृष्टिकोण का यह फायदा है कि सकारात्मक दृष्टिकोण न केवल सकारात्मक अपितु नकारात्मक दोनो का पर विचार करना कि स्वतंत्रता देता है और इसके ठीक विपरीत नकारात्मक दृष्टिकोण बस और बस नकारात्मकता को ही दर्शाता है।इसका स्प्ष्ट आशय यह है कि जब हम सकारात्मक दृष्टिकोण रखते है तो हम सही और गलत चुनने में सक्षम होते है और यदि हम नकारात्मक दृष्टिकोण रखते है तो हम केवल और केवल गलत और बेकार फ़ैसले चुनते हैं और व्यक्ति के व्यक्तित्व का आकलन भी नहीं कर पाते। मनोविज्ञान के के खण्ड मनोदशा जिसमें व्यक्ति की पढ़ा जाता है उसमें द्रष्टिकोण का बड़ा महत्व बताया गया है। उसमें बताया गया है कि हम यदि नकारात्मक दृष्टिकोण रखते है तो हम स्वयं को बीमार महसूस करते है औऱ फिर हमारी मनोदशा एक बीमार व्यक्ति के जैसी हो जाती है,वही हम यदि सकारात्मक दृष्टिकोण रखते है तो हम स्वयं को उर्जावान एवं स्वस्थ्य महसूस करते है।जिससे हमें नकारात्मक व्यक्ति के अपेक्षा हम किसी परिस्थिती से जल्दी ही निकल सकते है। अर्थात सकारात्मक दृष्टिकोण ऊर्जा का बहुत बड़ा स्रोत है।अतः हम बिना सकारत्मक दृष्टिकोण के सफल नहीं बन सकते है।
अर्थात पारिवार एवम अध्यन के सहायता से अपने दृष्टिकोण को , समय के साथ निष्कर्ष में बदलना ही सफलता में है। 
-०- 

पता 
धीरेन्द्र त्रिपाठी
सिद्देधार्शथनगर (उत्तरप्रदेश)
-०-



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