माँ
(कविता)
माँ सृष्टि पर भगवान का सर्व श्रेष्ठ सर्जन है,
‘माँ‘ शब्द में ही सारे ब्रह्माण्ड का दर्शन है।
ममत्व का महासागर और वात्सल्य का है वैभव।
हमें वे स्नेह सरिता में स्नान कराती है सदैव !!
माँसत्य, समर्पण, सहनशीलता की वनिता है,
त्यागी, तपस्विनी, तरुवर की शालिनता है!!
वे उर उर्वरता, ऊर्जा ऊर्जित, ऊर्मिला हैं,
कुसुम-सी हृदया, करुणा की सलिला है!!
घर के सदस्य माँ के हृदय वीणा के तार है!
सबके सुख– दुःख उनके सरगम के सुर है।।
माँ के जागने से सारा गृह सजीव– सा होता है,
उनके सोने से सब-कुछ निर्जीव–सा लगता है।।
ग़म को पी के खुशियों को बाँटना माँ का कर्म है,
सबको चाहना उनके जीवन मंत्र का धर्महै।।
माँ सृष्टि पर भगवान का सर्व श्रेष्ठ सर्जन है,
‘माँ‘ शब्द में ही सारे ब्रह्माण्ड का दर्शन है।
ममत्व का महासागर और वात्सल्य का है वैभव।
हमें वे स्नेह सरिता में स्नान कराती है सदैव !!
माँसत्य, समर्पण, सहनशीलता की वनिता है,
त्यागी, तपस्विनी, तरुवर की शालिनता है!!
वे उर उर्वरता, ऊर्जा ऊर्जित, ऊर्मिला हैं,
कुसुम-सी हृदया, करुणा की सलिला है!!
घर के सदस्य माँ के हृदय वीणा के तार है!
सबके सुख– दुःख उनके सरगम के सुर है।।
माँ के जागने से सारा गृह सजीव– सा होता है,
उनके सोने से सब-कुछ निर्जीव–सा लगता है।।
ग़म को पी के खुशियों को बाँटना माँ का कर्म है,
सबको चाहना उनके जीवन मंत्र का धर्महै।।
निस्वार्थ नेह नैन में नित बरसाती है,
प्रेम पीयूष का पेय का यमकर वाती है।।
प्रेम पीयूष का पेय का यमकर वाती है।।
बन के स्वयं धागा सब पुष्पों को पिरोती है!
समभाव का थाल सबको परोसती है!!
दूसरों का दर्द उनकी आहें बनती है!
सारी रात ममत्व काम रहम लगाती है।।
माँ का तन-मन-धन सबको है अर्पण।
फिर भी नहीं किया जमा किसी का समर्पण।।
पूरे श्रद्धा भाव से एक बार झुककर देखो !
माँ के चरणों में ही है जन्नत का सुख परखो !!
माँ के आशीर्वाद से नसीब भी बदल जाते हैं।
माँ के प्रेम के आगे प्रभु भी झुक जाते हैं।।
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