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Sunday, 22 December 2019

मुहावरों की एक ग़ज़ल (ग़ज़ल) - डॉ० अशोक ‘गुलशन’


मुहावरों की एक ग़ज़ल
(ग़ज़ल)
मैं साँसों का पंक्षी ऐसा जिसमें है द्रुत गति का कोष,
इतना निर्बल पथिक नहीं जो नौ दिन चलूँ अढ़ाई कोस|

राई को पर्वत कर दूँ मैं तिल को ताड़ बना डालूँ,
पत्थर में भी जान डाल दूँ इतना है जीवन में जोश |
अन्धों में काना राजा हूँ एक पन्थ दो काज करूँ,
पाँचों उँगली घी में अपनी अस्तु सभी के मन में रोष|
योग-ह्रास की सीमाओं पर सदा खरा मैं उतरा हूँ,
चाहे जितना गणित लगा लो तनिक न पाओगे तुम दोष|

मुझको समझो मुहावरों में ऐसी एक पहेली हूँ,
विस्मित कर डालूँ में सबको और उड़ा दूँ सबके होश|
-०-
संपर्क 
डॉ० अशोक ‘गुलशन’
बहराइच (उत्तरप्रदेश)
-०-



***
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2 comments:

  1. सुन्दर रचना के लिये आँप को बहुत बहुत बधाई आदरणीय !

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  2. गजल में मुहावरे और मुहावरों की गजल।वाह भाई!वाह!!
    बहुत अच्छा प्रयोग है।

    ReplyDelete

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