नारी का उत्पीड़न देश प्रेम संग
(कविता)
नारी का उत्पीड़न देश प्रेम संग
निज अबला कही जाती है वो
ऐसा कब तक आयेगा ये "है" शब्द
बदल कर रख देंगे इतिहास को हैं
कर जायेंगे कुछ ऐसा इस जहां में
निज अबला कही जाती "थी" हो जाएगा अब
रे नीच मनुज तू क्यों भूखा है वासना का
मिटाना ही है वासना का दुख तुझे
तो जा राष्ट्र से वासना की शपथ ले तू
मिटा दे तेरी प्यास हो जितनी
दिखा दे तेरी ताकत त्रास की
रह जाएंगे स्तब्ध सब राज ये
क्योंकि कहलाएंगे फिर विश्वगुरु हम
कुछ तो सोच इस अबला नारी का
रिश्ता पुराना है तेरी मां और बेटी का
नहीं जानता इस रिश्ते को तो
छोड़ चला जा इस जहां से अब तू
कुछ नहीं रखा इस काम वासना में
बदनाम होकर रह जाएगा तू
अगर दिखाएगा राष्ट्र प्रेम तू
नाम जग में कमाएगा फिर तू
इस शरीर का तो क्या है रे बंदे
मिलता एक दिन मिट्टी में ये
लिपटना है तो जा लिपट मिट्टी से
क्यों तड़पा रहा है इस जीवात्मा को तू
उठ जाग और देख उस सोने की चिड़िया को
जिसके लोग पूछे जाते थे अक्सर
नाम अमर कर गए वो जन
तू भी शक्ति दिखा दे अब गण
निज अबला कही जाती हूं मैं नर
इसको अब मिटा दे तू अब तर
बना दे "है" को "थी" मेरे लोक के वासी
भीख मांगती तुझसे ये इतिहास की अबला दासी
अभी तो तुझे प्यार से समझा रही हूं
कि तू है इस देश की मिट्टी का
सच बता रही हूं तुझे मैं बंदे
अगर नहीं होता इस मिट्टी से तेरा रिश्ता
जलाकर ख़ाक कर देती अस्तित्व तेरा
संभल जा प्यार से वक़्त है अभी भी
जब निकल गया मेरा लावा दिल से
नहीं बचेगा तू इस तिहुं लोक में
न बचेगी कोई तेरी माया
निज अबला कही जाती थी मैं
अब इतिहास की बात हो गई हैं ये
-०-
पता-
नारी का उत्पीड़न देश प्रेम संग
निज अबला कही जाती है वो
ऐसा कब तक आयेगा ये "है" शब्द
बदल कर रख देंगे इतिहास को हैं
कर जायेंगे कुछ ऐसा इस जहां में
निज अबला कही जाती "थी" हो जाएगा अब
रे नीच मनुज तू क्यों भूखा है वासना का
मिटाना ही है वासना का दुख तुझे
तो जा राष्ट्र से वासना की शपथ ले तू
मिटा दे तेरी प्यास हो जितनी
दिखा दे तेरी ताकत त्रास की
रह जाएंगे स्तब्ध सब राज ये
क्योंकि कहलाएंगे फिर विश्वगुरु हम
कुछ तो सोच इस अबला नारी का
रिश्ता पुराना है तेरी मां और बेटी का
नहीं जानता इस रिश्ते को तो
छोड़ चला जा इस जहां से अब तू
कुछ नहीं रखा इस काम वासना में
बदनाम होकर रह जाएगा तू
अगर दिखाएगा राष्ट्र प्रेम तू
नाम जग में कमाएगा फिर तू
इस शरीर का तो क्या है रे बंदे
मिलता एक दिन मिट्टी में ये
लिपटना है तो जा लिपट मिट्टी से
क्यों तड़पा रहा है इस जीवात्मा को तू
उठ जाग और देख उस सोने की चिड़िया को
जिसके लोग पूछे जाते थे अक्सर
नाम अमर कर गए वो जन
तू भी शक्ति दिखा दे अब गण
निज अबला कही जाती हूं मैं नर
इसको अब मिटा दे तू अब तर
बना दे "है" को "थी" मेरे लोक के वासी
भीख मांगती तुझसे ये इतिहास की अबला दासी
अभी तो तुझे प्यार से समझा रही हूं
कि तू है इस देश की मिट्टी का
सच बता रही हूं तुझे मैं बंदे
अगर नहीं होता इस मिट्टी से तेरा रिश्ता
जलाकर ख़ाक कर देती अस्तित्व तेरा
संभल जा प्यार से वक़्त है अभी भी
जब निकल गया मेरा लावा दिल से
नहीं बचेगा तू इस तिहुं लोक में
न बचेगी कोई तेरी माया
निज अबला कही जाती थी मैं
अब इतिहास की बात हो गई हैं ये
-०-
पता-
सुन्दर शक्तिशाली रचना के लिये बहुत बहुत बधाई आदरणीय !
ReplyDeleteसंगीता जी आपका आभार इस सम्मान के लिए महोदया जी।
Delete☺️😊💐💐🌹🌹