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Sunday, 22 December 2019

तुलसी विवाह (लघुकथा) - गोविंद भारद्वाज

तुलसी विवाह
(लघुकथा)
गायत्री ने अपने घर के आँगन में एक तुलसी जी का पौधा लगा रखा था।उस नन्ही सी तुलसी की पूजा और सेवा करते हुए वर्षों गुजर गये। एक बार कार्तिक माह में गायत्री ने पुण्य कमाने के लिए तुलसी जी का विवाह करने की योजना बनाई।एक दिन गायत्री जी ने अपने पति ब्रह्मदेव से तुलसी जी के विवाह की बात छेड़ी। ब्रह्मदेव ने पूछा,"तुलसी विवाह में लगभग कितना खर्च हो जाएगा?" "खाना- पीना, शालिग्राम की बारात का स्वागत, फेरे व विदाई में लगभग दो से तीन लाख रूपये तो लगता ही जाएंगे।" गायत्री ने अंदाज बताते हुए कहा। इस पर ब्रह्मदेव ने कहा,"इस काम में इतने ही और रूपये लगा दिए जाएं तो एक जीवित तुलसी का विवाह कर दें तो।" "क्या कहना चाह रहे हो....मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा।" गायत्री ने अनभिज्ञता जताते हुए पूछा। इस पर ब्रह्मदेव ने अपनी पत्नी गायत्री को समझाते हुए कहा,"देखो अपना ड्राइवर है ना...रघु।वह वर्षों पुराना मुलाजिम है हमारा। उसकी बीस साल की बेटी है। उसकी सगाई एक साल पहले हो चुकी है लेकिन रघु की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण शादी की तिथि तय नहीं कर पा रहा है वो। क्यों न उसका विवाह अपने हाथों से करा दिया जाए।" "लेकिन मुझे तो तुलसी जी का विवाह करना है।" गायत्री बोली। इस पर ब्रह्मदेव ने मुस्कराते हुए कहा, "हाँ...हाँ भाग्यवान ..तुलसी का ही विवाह करेंगे।" "वो कैसे जी?" गायत्री ने आश्चर्य से पूछा ।
"वो ऐसे कि रघु की बेटी का नाम तुलसी ही है।" ब्रह्मदेव ने जवाब दिया। अपने पति के इस जवाब से गायत्री फूली नहीं समायी। वह तुलसी के विवाह की तैयारी में जुट गयी।
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पता:
गोविंद भारद्वाज
अजमेर राजस्थान


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