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Tuesday, 3 December 2019

दिल में बसा आशियाना (ग़ज़ल) - सुमन अग्रवाल "सागरिका"

दिल में बसा आशियाना
(ग़ज़ल)

एक अजनबी से पहली मुलाकात हुई।
धीरे-धीरे हमारे प्यार की शुरुआत हुई।

दहलीज पर जैसे ही कदम रखा उसने,
तभी रिमझिम फुहारों की बरसात हुई।

मत पूंछिये जनाब हम पर तब क्या गुजरी,
तभी हमारी खुशियों की सारी सौगात हुई।

रचाई थी मेंहदी मैने सजना के नाम की,
जैसे मेरी जिन्दगी तारों की बारात हुई।

हर गलत बात पर टोका है किसी ने मुझको,
जिन्दगी मेरी नजरों से मेरी ही सवालात हुई।

मैने तो कुछ कहा भी नहीं तुमसे फिर भी,
ऐसे रूठने की वजह भला ये क्या बात हुई।

कोई समझ न सका जमाने में मेरे दिल को,
फिर क्यों मेरे साथ अज़ब खुराफ़ात हुई।

जो भी सजाये थे हमने तराने अपने प्यार के,
दिल में बसा आशियाना, कैसी कायनात हुई।

“सुमन” के लफ्ज बहुत खामोश है आजकल,
खामोश सुरों की अजब, गज़ब वारदात हुई।
-०-
सुमन अग्रवाल "सागरिका" 
आगरा (उत्तर प्रदेश)
-०-



***
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