कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध
(नवगीत)
सुन ओ भारतवासी अबोध,
कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध?
आये दिन करता हड़ताल,
ट्रेनें फूँके हो विकराल,
धरने दे कर रोके चाल,
सड़कों पर लाता भूचाल,
करे देश को तू बदहाल,
और बजाता झूठे गाल,
क्या यही तेरा है आत्म-बोध,
कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध?
क्या व्यर्थ व्यवस्था के ये तंत्र,
चाहे रोये लोकतंत्र,
पड़े रहे क्या बंद यंत्र,
मौन रहें क्या जीवन-मंत्र,
औरों के हित तो केवल व्यर्थ
उनके दुख का भला क्या अर्थ,
कर स्व जाति, धर्म, दल कृतार्थ,
पूरे करता अपने ही स्वार्थ,
क्या बस तेरा यही प्रबोध,
कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध?
चाहे बच्चे ढूंढ़ें कचरे में जीविका,
झुग्गी, झोंपड़ झेलें विभीषिका,
नारी होती रहे घर्षिता,
सिसके नैतिकता, मानवता,
पर तेरी आँखें रहेंगी बंद,
बुद्धि तेरी पड़ जाती कुंद,
भूल गया क्या सब अवरोध,
कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध?
हक़ की क्या है यही लड़ाई,
या लोकतंत्र की है तरुणाई,
या तेरी अबतक की कमाई,
क्या स्वतंत्रता यही विचार की,
या पराकाष्ठा अधिकार की,
क्या यही सीख है संस्कार की,
या अति है उदण्ड व्यवहार की,
क्या यही तेरी अबतक की शोध,
कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध?-०-
सुन ओ भारतवासी अबोध,
कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध?
आये दिन करता हड़ताल,
ट्रेनें फूँके हो विकराल,
धरने दे कर रोके चाल,
सड़कों पर लाता भूचाल,
करे देश को तू बदहाल,
और बजाता झूठे गाल,
क्या यही तेरा है आत्म-बोध,
कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध?
क्या व्यर्थ व्यवस्था के ये तंत्र,
चाहे रोये लोकतंत्र,
पड़े रहे क्या बंद यंत्र,
मौन रहें क्या जीवन-मंत्र,
औरों के हित तो केवल व्यर्थ
उनके दुख का भला क्या अर्थ,
कर स्व जाति, धर्म, दल कृतार्थ,
पूरे करता अपने ही स्वार्थ,
क्या बस तेरा यही प्रबोध,
कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध?
चाहे बच्चे ढूंढ़ें कचरे में जीविका,
झुग्गी, झोंपड़ झेलें विभीषिका,
नारी होती रहे घर्षिता,
सिसके नैतिकता, मानवता,
पर तेरी आँखें रहेंगी बंद,
बुद्धि तेरी पड़ जाती कुंद,
भूल गया क्या सब अवरोध,
कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध?
हक़ की क्या है यही लड़ाई,
या लोकतंत्र की है तरुणाई,
या तेरी अबतक की कमाई,
क्या स्वतंत्रता यही विचार की,
या पराकाष्ठा अधिकार की,
क्या यही सीख है संस्कार की,
या अति है उदण्ड व्यवहार की,
क्या यही तेरी अबतक की शोध,
कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध?-०-
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया (असम)
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