चुनाव
(लघुकथा)
मतदान का दिन होने के कारण आज पुरे परिवार की छुट्टी है। सबकी छुट्टी एकसाथ हो ऐसा बहुत कम ही होता है। दिहाडीदार मजदूर होने के कारण उनहे छुट्टी करना बहुत मंहगा पड़ता है। मीता बड़ी बेचैनी से घर के सारे काम कर रही है उसके आस पास वाली सारी औरतों का ही यही हाल है । सबके मर्द बाहर गली में ताश खेलने में मशगूल होने का दिखावा कर रहे है। असल मे वे सब इतंजार कर रहे है कौन सी पार्टी ज़्यादा पैसा देगी और उन सब के वोट एक ही व्यक्ति को जाएँगें । औरतें बेचैन है वोट भी आदमी की मर्ज़ी से डालना पड़ेगा पैसे से खूब दारू पीयेगें और औरतों पर हाथ आजमाएगें। बाहर देबां की आवाज़ आई जो ललकार कर कह रही थी इस बार हम अपनी करेगी कुछ और औरतें भी उसके साथ थी । मीता सिहर उठी कि जो आज रात होगा वो लोकतन्त्र की हत्या के साथ साथ उनहे अगले पाँच साल के लिए सड़क पर रहने के लिए भी मजबूर कर देगा ।
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