कर्म स्थली
(कविता)
देख बियाबान जंगल को, सब मुस्कुराए।
कानाफूसी करते, सब नजर आए।
बात करे ना मन की, नजर में नजर मिलाए ।
फंस गया भाई हमारा, कैसे निजात दिलाए ।
देख हाल स्थली का, पसीना सबके आए।
दुखी मन भर आया, ऊपरी मन मुस्कुराए ।
देख 'कताला' उनको, सबका हौसला बढ़ाए ।
जंगल में मंगल कर दे, यही उम्मीद सब लगाए।
देख बियाबान जंगल को, सब मुस्कुराए।
देख बियाबान जंगल को, सब मुस्कुराए।
कानाफूसी करते, सब नजर आए।
बात करे ना मन की, नजर में नजर मिलाए ।
फंस गया भाई हमारा, कैसे निजात दिलाए ।
देख हाल स्थली का, पसीना सबके आए।
दुखी मन भर आया, ऊपरी मन मुस्कुराए ।
देख 'कताला' उनको, सबका हौसला बढ़ाए ।
जंगल में मंगल कर दे, यही उम्मीद सब लगाए।
देख बियाबान जंगल को, सब मुस्कुराए।
-०-
ओम प्रकाश कताला
सिरसा (हरियाणा)
-०-
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