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Tuesday, 3 December 2019

बूढ़ी आँखें (कविता) - शिखा सिंह

बूढ़ी आँखें
(कविता) 
जब बूढी आँखे
खोजने लगें सहारा
किसी कोने का
तो समझ लो
कोई उनका
दूर चला गया
जब माँथे पर लकीरें
देनें लगे उनके
कोई संदेश
तो समझो
कोई दर्द उभरने लगा
जब आने लगे
उनके बिस्तरों में
कोई गंध
तो समझ लो
अपाहिज हो रहीं हैं
उनकी हडिडयाँ
जब उनका पेट
अन्दर धसने लगे
तो जानो उनका भूख तो है
मगर आवाज
बिक्लागं हो रही है
सपने तो उसी के होते है
बस पलते है बच्चों की आँखो में
वो माता पिता ही हो सकते है
जो वह चह कर भी
कोई शिकायत नही करते
नही है उसके पास कोई फिर क्यों
शिकायतों में जीते है
मन उन बच्चों के
जिसने सारे जीवन ढोया है वो
बोझ तुझे बडा करने में
बिगड गई उसकी सारी आस्था
जब तू नन्ना था 
-०-

-०-
पता 
शिखा सिंह 
फतेहगढ़- फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश)

-०-

***
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