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Monday, 2 December 2019

स्वछता के दोहे (दोहा) - प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे


स्वछता के दोहे
(दोहा)

बिखरी हो जब गंदगी,तब विकास अवरुध्द !
घट जाती संपन्नता,बरकत होती क्रुध्द !!

वे मानुष तो मूर्ख हैं,करें शौच मैदान !
जो अंचल गंदा करें,पकड़ो उनके कान !!

धन्य वही जो स्वच्छता, को देता आयाम !
सुलभ केंद्र अब बन गया,जैसे तीरथ धाम !!

फलीभूत हो स्वच्छता,कर देती सम्पन्न !
जहॉं फैलती गंदगी,नर हो वहां विपन्न !!

बनो स्वच्छता दूत तुम,करो जागरण ख़ूब !
नवल चेतना की "शरद", उगे निरंतर दूब !!

अंधकार पलता वहॉं,जहॉं स्वच्छता लोप !
जागे सारा देश अब,हो विलुप्त सब कोप !!

मन स्वच्छ होगा तभी,जब स्वच्छ परिवेश !
नव स्वच्छता रच रही,नव समाज,नव देश !!

है स्वच्छता सोच इक,शौचालय अभियान !
शौचालय हर घर बने,तब बहुओं का मान !!

शौचालय में सोच हो,कूड़ा कूड़ादान !
तन-मन रखकर स्वच्छ हम,रच दें नवल जहान !

जीवन में आनंद तब,कहीं नहीं हो मैल !
रहें स्वच्छ,दमकें सदा,गलियां,सड़कें,गैल !!

सभी जगह हो स्वच्छता,तो सब कुछ आसान !
यही आज कहता "शरद",है स्वच्छता मान !!-०-
प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
मंडला (मप्र)
-०-

***
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