रिश्तों की मर्यादा
(आलेख)
सामाजिक व्यवस्था जिन तानो-बानों से गुंथी है, उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण 'रिश्ते' हैं। हर रिश्ते का अपना नाम व उससे जुड़ी जिम्मेदारियां होती हैं। स्वस्थ रिश्ते की शुरूआत ही मान-सम्मान और मर्यादा से होती है। किसी व्यक्ति का सलीके से किया गया व्यवहार ही हमें उसकी ओर खींचता है। रिश्तों के मजबूत और हेल्दी बने रहने के लिए उनका मर्यादा में रहना अनिवार्य है। जब हम अपनी हद पार करने लगते हैं तो रिश्तों में दरार आने लगती है।
मनोविज्ञान कहता है कि रिश्तों में मर्यादा का मतलब किसी को बाध्य करना या बंदिशें लगाना नहीं है। वरन स्वयं को व अपने रिश्तों को सुरक्षित रखना है। अर्थात मर्यादित रहना हर रिश्ते की कामयाबी का मूलमंत्र है।
प्रकृति का दिया सबसे अनमोल उपहार है 'रिश्ता'। फिर चाहे वो पति-पत्नी का हो या माता-पिता का। हर रिश्ता सुनहरा और अनमोल होता है। रिश्तों की अहमियत दो लोगों की आपसी समझदारी और सामंजस्य पर टिका होता है अगर एक पक्ष भी कमजोर हुआ तो उसका टिकना मुश्किल हो जाता है। इसे निभाने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत की आवश्यकता नहीं होती। जरूरत होती है तो सिर्फ आदर, सम्मान और विश्वास की। एक -दूसरे से कुछ छिपाने से मनमुटाव बढ़ता है। आज रिश्तों की खोती मर्यादा के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? आधुनिक जीवन-शैली, सर्वसुलभ इंटरनेट सेवाएं ,सिनेमा या फिर स्वयं मनुष्य को ??
मेरा मानना है कि केवल किसी एक को दोषित ठहराना गलत है। इसके लिए बहुत से घटक जिम्मेदार हैं। मनुष्य एक विचारशील और चेतनायुक्त प्राणी है। उसे ज्ञात होने चाहिए कि वह क्या कर रहा है? क्यों कर रहा है?उसकी हरकतों का उसके परिवार पर क्या असर पड़ सकता है?? पूर्ण मर्यादित इंसान ही परिवार एवम समाज में सम्मानित जीवन व्यतीत करता है। अधिक बहस करना, आलोचनाएं या चापलूसी करना, किसी को प्रताड़ित करना भी मर्यादा भंग की श्रेणी में आता है। जो व्यक्ति को अव्यवहारिक सिद्ध करते हैं। आचरण की मर्यादा केवल चरित्र हीनता से ही भंग नहीं होती, अपितु झूठ बोलने, बुराई का साथ देने,उधार लेने, नशा करने, जुआ खेलने से भी भंग होती है। नशा करने के बाद व्यक्ति को किसी बात का होश नहीं रहता। वह पवित्र से पवित्र रिश्ते को भी भंग कर देता है।
रिश्ता कितना भी प्रिय क्यों न हो, निजी कार्यों में बिना अनुमति दखल देना अनुचित माना जाता है। बुरे वक्त पर रिश्ते सहायक होते हैं, किंतु रिश्तों से नित्य सहायता की अपेक्षा करना गलत है। समाज में पारिवारिक रिश्तों के अतिरिक्त मित्रता का रिश्ता भी होता है, जो कभी कभी पारिवारिक रिश्तों से भी बढ़कर हो जाता है। यह एक वैचारिक सम्बन्ध है, किंतु कितना भी प्रिय मित्र हो मर्यादा लांघने के बाद वह भी अप्रिय लगने लगता है।
लोभ ,मोह, काम, क्रोध, अहंकार, ईर्ष्या, घृणा, प्रेम ,इत्यादि कोई भी विषय हो। जब तक मर्यादा में हो तबतक ही सही है अन्यथा हानिकारक हो जाते हैं। जैसे अग्नि, जल, वायु संसार को जीवन प्रदान करते हैं किंतु मर्यादा की रेखा लांघते ही प्रलयंकारी बन जाते हैं।जिसका परिणाम सिर्फ तबाही होता है।
हार्दिक आभार सृजन महोत्सव.....💐
ReplyDeleteBahut sundar aalekh
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