भारत माँ की शान है
(कविता)
गंग धारा जयमाल है
हरित धरा का वसन निराला
भारत माँ की शान है ।
एक हाथ विंध्याचल पर्वत
दूजे हिम की झालर है
चरण पखारे सागर जिसके
ऐसा रूप निराला है ।
वेद पुराणों के जयकारे
घर-घर गूँजे जाते हैं
ऋषि-मुनियों के तप बल भी
धरती पावन कर जाते हैं।
गंगा, यमुना, सरस्वती की
धारा जब मिल जाती है
संगम होता जब तीनों का
प्रयाग राज कहलाती है ।
अमृत बिखरा है धरती पर
देव भूमि कहलाता है
भारत माता का अतीत
सब जग में पूजा जाता है ।
आओ हम भी वंदन कर लें
गुण गौरव का गान करें
शीश नवा कर भारत माँ पर
गर्व करें अभिमान करें ।
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पता:
श्रीमती सुशीला शर्मा
जयपुर (राजस्थान)
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