मैं समय हूं,
मैं प्रलय हूं ,
रोकना मुझको कठिन है
टोकना मुझको कठिन है
आता हूं,जब मौज़ चाहे,
जाता हूं, जब मौज़ चाहे,
मोड़ना मुझको कठिन है।
रात है, तो दिन भी होगा,
शाम है, होगा सवेरा,
शूल में से फूल चुनना
है यही वीरत्व मेरा।
मैंने है, इतिहास देखा,
कृष्ण देखा,कंस देखा,
राम और हनुमान देखा,
लंका का परिणाम देखा,
महाबली रावण कहाँ है?
समय सबको खा गया है,
गीत केवल गा गया है,
वक्त का पहिया बदल कर
मोड़ लेने आ गया है ।
सादगी ईमान जिनका,
सत्य था,भगवान जिनका,
मरण नहीं है, वरण उनका,
नाम ऐसा पा गये वे,
समय को भी खा गये वे।
पर नहीं,बलवान हूं मैं,
समय हूं, तूफान हूं मैं,
बस यही मन में चाह,
तुम मत रोको मेरी राह।
वक्त की लहरों ने,
भारत की माटी को,
जब भी पुकारा है,
माँ के लाडलों ने,
शहीद परवानों ने,
अलबेले मस्तानों ने,
तब ही हुंकारा है,
अत्याचारी औरंगजेब हो,
या कि नादिरशाह,
कोई फर्क नहीं पड़ता है।
ताज फेंके,तख़्त तोड़े,
गौतम और गांधी न छोड़ें
पाप को फिर फिर पछाड़ा,
स्वार्थ को बेमौत मारा,
पुन्य गौतम बन गया है,
प्यार गांधी बन गया है।
शत्रु की ललकार पर,
माटी का कण कण,
वीर सपूत बन,
सर हथेली रखे,
युद्ध में लड़ता है।
चाहते हैं, हम तो,
युद्ध हो ही नहीं,
अगर कोई पहल करे,
दुःसाहस करे,ललकारे,
उस नापाक का,
फन कुचलना भी जरूरी है।
दुश्मन को सबक सिखाने को,
गलती का एहसास कराने को,
दुश्मन के घर में घुस कर,
जौहर दिखाना जरूरी है।
कर जौहर का अभिनंदन,
तैयार खड़े,सब माटी के चन्दन,
हमने विश्व को दिया है बुद्ध,
नहीं चाहते कोई भी युद्ध,
पर फिर भी,युद्ध के लिये,
सदा तैयार रहना जरूरी है।
वक़्त की मार को,
भविष्य की धार को,
वर्तमान के सार को
जो समझ गया,वो रह गया,
दूसरों का रहता नहीं,
कभी कोई नामोनिशान है।
सुन लो,समझ लो,ध्यान से,
सबके लिये यही फ़रमान है,
उत्थान तो कभी होगा नहीं,
भुलाना अपना सारा गुमान है।
फिर से दोहराता हूं,
गीत वही गाता हूं,
मैं समय हूं,
मैं प्रलय हूं,
रोकना मुझको कठिन है,
टोकना मुझको कठिन है,
आता हूं जब मौज़ चाहे,
जाता हूं जब मौज़ चाहे,
मोड़ना मुझको कठिन है,
रोकना मुझको कठिन है,
टोकना मुझको कठिन है।
मैं प्रलय हूं ,
रोकना मुझको कठिन है
टोकना मुझको कठिन है
आता हूं,जब मौज़ चाहे,
जाता हूं, जब मौज़ चाहे,
मोड़ना मुझको कठिन है।
रात है, तो दिन भी होगा,
शाम है, होगा सवेरा,
शूल में से फूल चुनना
है यही वीरत्व मेरा।
मैंने है, इतिहास देखा,
कृष्ण देखा,कंस देखा,
राम और हनुमान देखा,
लंका का परिणाम देखा,
महाबली रावण कहाँ है?
समय सबको खा गया है,
गीत केवल गा गया है,
वक्त का पहिया बदल कर
मोड़ लेने आ गया है ।
सादगी ईमान जिनका,
सत्य था,भगवान जिनका,
मरण नहीं है, वरण उनका,
नाम ऐसा पा गये वे,
समय को भी खा गये वे।
पर नहीं,बलवान हूं मैं,
समय हूं, तूफान हूं मैं,
बस यही मन में चाह,
तुम मत रोको मेरी राह।
वक्त की लहरों ने,
भारत की माटी को,
जब भी पुकारा है,
माँ के लाडलों ने,
शहीद परवानों ने,
अलबेले मस्तानों ने,
तब ही हुंकारा है,
अत्याचारी औरंगजेब हो,
या कि नादिरशाह,
कोई फर्क नहीं पड़ता है।
ताज फेंके,तख़्त तोड़े,
गौतम और गांधी न छोड़ें
पाप को फिर फिर पछाड़ा,
स्वार्थ को बेमौत मारा,
पुन्य गौतम बन गया है,
प्यार गांधी बन गया है।
शत्रु की ललकार पर,
माटी का कण कण,
वीर सपूत बन,
सर हथेली रखे,
युद्ध में लड़ता है।
चाहते हैं, हम तो,
युद्ध हो ही नहीं,
अगर कोई पहल करे,
दुःसाहस करे,ललकारे,
उस नापाक का,
फन कुचलना भी जरूरी है।
दुश्मन को सबक सिखाने को,
गलती का एहसास कराने को,
दुश्मन के घर में घुस कर,
जौहर दिखाना जरूरी है।
कर जौहर का अभिनंदन,
तैयार खड़े,सब माटी के चन्दन,
हमने विश्व को दिया है बुद्ध,
नहीं चाहते कोई भी युद्ध,
पर फिर भी,युद्ध के लिये,
सदा तैयार रहना जरूरी है।
वक़्त की मार को,
भविष्य की धार को,
वर्तमान के सार को
जो समझ गया,वो रह गया,
दूसरों का रहता नहीं,
कभी कोई नामोनिशान है।
सुन लो,समझ लो,ध्यान से,
सबके लिये यही फ़रमान है,
उत्थान तो कभी होगा नहीं,
भुलाना अपना सारा गुमान है।
फिर से दोहराता हूं,
गीत वही गाता हूं,
मैं समय हूं,
मैं प्रलय हूं,
रोकना मुझको कठिन है,
टोकना मुझको कठिन है,
आता हूं जब मौज़ चाहे,
जाता हूं जब मौज़ चाहे,
मोड़ना मुझको कठिन है,
रोकना मुझको कठिन है,
टोकना मुझको कठिन है।
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