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Sunday, 12 January 2020

तिरंगा (कविता) - शिल्पी कुमारी

तिरंगा
(कविता)
तड़प- तड़प के दिल से
आह मेरी निकलती है
जब कोई हवा यहां
तेरी छुअन सी लगती है
तेरी हिफाजत को श्वास मेरी
रूक - रूक कर चलती है
मेरे दिल की गाड़ी,
छूक- छूक तेरी ओर करती है।
मीत जब तू हँसती है,
पवन संग उड़ती है,
तब तीन रंगों में क्या खूब लगती है।
काल सी तेरे माथे की बिंदिया
चौबीस है जिसमें तीलियाँ
यह जन्म, वह जन्म,
मेरा हर जन्म,
तुझ पर कुर्बान है।
तू ही तो मेरे
ताबूत की पहचान है।
-०-
पता- 
शिल्पी कुमारी
उदयपुर (राजस्थान)
-०-

***
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