नशा मुक्ति
(लघुकथा)
घर पर सेठ लक्ष्मीनारायण जी को मदिरापान करते देख आठ वर्षीय शुभम ने कहा -' पापा! मैं भी शराब पीना चाहता हूं?'
' नहीं..! नहीं...!! यह बहुत बुरी और घातक चीज है इससे लीवर को काफी नुकसान होता है, और बेटे..! इसकी लत ऐसी होती है कि यह बड़े-बड़े राजाओं को भी रंक बना देती है...' लक्ष्मीनारायण जी ने बेटे को गोद में लेते हुए बड़े प्यार से कहा।
' तो पापा, फिर यह बेवकूफी क्यों? जब आपको पता है कि यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। और यह आपको भिखारी तक बना सकता है, तो इस तेजाब का त्याग क्यों नहीं कर देतें?' शुभम ने बड़ी बेबाकी से कहा। अपने आप को हारता देख लक्ष्मीनारायण जी ने कहा- 'ठीक है बेटे! कल पहली जनवरी से मैं शराब को हाथ भी नहीं लगाऊंगा...'
' पापा, कल किसने देखा है? यह शुभ कार्य आज ही क्यों नहीं कर देते हैं?' इस बार शुभम ने पापा को अपनी बातों में फंसा लिया था। सेठ लक्ष्मीनारायण जी ने शराब को फर्श पर बिखेरते हुए शुभम के माथे को चूम लिया और सभी प्रकार के व्यसनों को तिलांजलि देते हुए आजीवन संकल्प लिया कि कभी नशा नहीं करूंगा।
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पता:
बजरंगी लाल यादव
बक्सर (बिहार)
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