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Sunday, 12 January 2020

वक्त (कविता) - पता: गीतांजली वार्ष्णेय

वक्त
(कविता)
एक सत्य है,एक भेद है,
पर वक्क्त का भेद अभेद है,
आज बुरा कल भला वक्क्त है।
न रुका है,न रुकेगा,वक्क्त का खेल बड़ा सख्त है।।
वक्क्त ने पलट दिए सम्राटों के तख्त हैं।
न उड़ाओ हँसी वक्क्त की बुरा वक्त है।
हँसी उड़ाई द्रोपदी ने वक्क्त की,
महाभारत रच दी करनी वक्क्त की।
अहंकार न कर अच्छे वक्क्त पर,
कल क्या पता वक्क्त क्या दिखायेगा।
रावण ने किया अहंकार वक्क्त का,
न रहा रावण,जल गई लंका स्वर्ण की।
"एक लाख पुत्र सवा लाख नाती, त रावण घर दिया न वाती"कहावत बन गयी वक्क्त की।
धन दौलत सब पड़ा रह जायेगा,अंत समय जब आएगा,न पूछेगा ,न बताएगा जब वक्क्त तेरा आएगा।।
-०-
पता:
गीतांजली वार्ष्णेय
बरेली (उत्तर प्रदेश)
-०-
***
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1 comment:

  1. सत्य पर बुलंदी आबाज के लिये बहुत बहुत बधाई है आप को।

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