शिक्षा
(कविता)
अक्षर अक्षर दीप जले,
चांद सितारों सा चमके।
शिक्षालय की सुमन वाटिका,
दिन पर दिन क्षण क्षण महके।।
कच्चे घड़े से शिष्यों को हम,
प्यार की थोड़ी थपकी दे।
क ख ग से वेद पुराणों,
तक गढ़ गढ़ हम सब भर दे।।
जग मग चमके, तन मन महके,
ज्यों दामिनि तड़ तड़ तड़के।।
*2*
दीप शिक्षा का,
जग में जलाते चलो।
मन में अशिक्षा के,
तम को मिटाते चलो।।
शिष्यों के फूल से,
ये सुमन वाटिका।
खुशबू से भर उठे,
ये सुमन वाटिका।।
दीप जगमग हर इक,
जगमगाते चलो।
तार वीणा की,
झंकार मां शारदे।
सृष्टि के कंठ में,
माँ तू अवतार ले।।
चाँद तारों में,
सबको चमकाते चलो।
शिष्य गुरु का है,
रिश्ता जगत में बड़ा।
सृष्टि का नाता न,
कोई इससे बड़ा।।
वेद पुराणों की,
महिमा बताते चलो।
-०-
पता -
प्रशान्त कुमार 'पी.के.'
हरदोई (उत्तर प्रदेश)
-०-
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