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Monday, 20 July 2020

हो कर मायूस (ग़ज़ल) - सत्यम भारती

हो कर मायूस
(गजल)
हो कर मायूस सब बेजार बैठे हैं,
ले डिग्री की गठरी बेकार बैठे हैं ।

रोजगार समाया सत्ता की आगोश में,
सिर्फ मैं नहीं मेरे कितने यार बैठे हैं।

बदलना होगा समाज की सोच अब,
जंग तो छेड़ो हम तैयार बैठे हैं ।

निकले किस गली से घर की बहू बेटियां,
हर तरफ जिस्म के खरीदार बैठे हैं ।

कर्म करो ऐसा की फक्र हो तुझ पर,
तुम पर हंसने को तेरे रिश्तेदार बैठे हैं ।

एक तरफा प्यार वैसा ही होता जैसे-
नाव इस तरफ मांझी उस पार बैठे हैं ।

जिस से हाथ मिलाना जरा परखना सत्यम
इंसानों के अंदर कितने किरदार बैठे हैं ।
-०-
पता-
सत्यम भारती
नई दिल्ली
-०-

***
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