अधूरी रही
(कविता)
राजमहलों से निकली तो मीरा बनी
अल्हड़पन में रही जब दीवानी बनी
जब राधा बनी तो अकेली रहीं
हर युग में बस मैं अधूरी रही
राजरानी बनी जब हरण हुआ
नींद शैंया पर पूरा वनवास जिया
इंद्रदेव से छली गई जब
युगों– युगों तक पाषाण रही
हर युग में मैं बस अधूरी रही
माॅ॑ देवकी तो बनी पर अधूरी रही
अग्निपरीक्षा भी दी फिर भी पाकीजा न हुई
माॅ॑ कुन्ती के वचनों से ,पांच हिस्सों में बांटी गई
पत्नी बनी जब बुद्धदेव की ,महलों में थी पर अधूरी रही
हर युग में मैं बस अधूरी रही ।
पिया प्रेम में यम से लड़ी, कुछ वर्षों तक सती हुई
अग्निपुत्री रही, केश खोली प्रतिज्ञा भी ली
त्रिपुरारी ने छला तो तुलसी बनी
कभी लक्ष्मी बनी, कभी लक्ष्मीबाई बनी
जब– जब नारी बनी बस अधूरी रही ।
हर युग में मैं बस अधूरी रही ।।"
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