*** हिंदी प्रचार-प्रसार एवं सभी रचनाकर्मियों को समर्पित 'सृजन महोत्सव' चिट्ठे पर आप सभी हिंदी प्रेमियों का हार्दिक-हार्दिक स्वागत !!! संपादक:राजकुमार जैन'राजन'- 9828219919 और मच्छिंद्र भिसे- 9730491952 ***

Sunday, 23 August 2020

चल पड़ा था एक दिन (कविता) - श्रीमती सुशीला शर्मा

चल पड़ा था एक दिन
(कविता)
चल पड़ा था एक दिन
यूँही अकेला राह पर
आस थी मिल जाएगा
कोई तो देगा साथ अब

मिल तो रहे थे बहुत से
मुझ औजैसे, जो थे चल पड़े
पर सभी थे गुम यहाँ
कोई ना मिलना चाहते

मन में छुपाए लाख गम
नजरों से करते थे बयाँ
लेकिन वो अपनों से भी
दर्दे दिल छुपाकर चल रहे

चल रहे कुछ साथ ,पर
ना चाहते थे बोलना
डर था कहीं सब मर्म
पड़ जाए ना उनको खोलना

हमउम्र भी थे हम सभी
थे जख्म सबके ही हरे
रिस भी रहे थे कुछ यूँही
नासूर थे जो बन गए

मरहम लगाता कौन?
एक-दूजे से सब ही कट रहे
मुस्कुराते देखकर , पर
मौन ही सब चल रहे

बैठे भी थे फिर साथ में
लेकिन ना कोई बात की
मैने जरा सा छेड़ा तो
बहने लगी  अश्रु कड़ी

सबके ही जख्म थे एक से
मरहम भी था वो एक ही
लेकिन वो डिबिया ना मिली
हमको किसी बाजर में

चलना है यूँ ही राह में
धीरज ये मन में धर रहे
भीड़ है चारों तरफ
फिर भी अकेले चल रहे।
-०-
पता:
श्रीमती सुशीला शर्मा 
जयपुर (राजस्थान) 
-०-

श्रीमती सुशीला शर्मा जी की रचनाएं पढ़ने के लिए शीर्षक चित्र पर क्लिक करें! 

***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

1 comment:

  1. हार्दिक बधाई है मैम! सुन्दर मारमिक रचना के लिये।

    ReplyDelete

सृजन रचानाएँ

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ