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Sunday, 9 August 2020

नानू (ग़ज़ल) - प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे


नानू 
(ग़ज़ल)
सब पर नेह लुटाते नानू ,
सबसे प्यार जताते नानू ।

कोई छोटा,बड़ा नहीं है,
सबको ही अपनाते नानू  ।

भाव भरा बर्ताव मिले तो,
तत्क्षण ही हरियाते नानू ।

पीड़ा,ग़म,मायूसी पीकर,
हरदम ही मुस्काते नानू ।

मिले कोय लाचार,दुखी यदि,
करुणा ख़ूब दिखाते नानू ।

संस्कार,अनुशासन का जल,
जी-भर ख़ूब बहाते नानू ।

अपना कोई ठेस लगा दे,
तो पल में मुरझाते नानू ।

स्वाभिमान पर हों आघातें,
तो जमकर अड़ जाते नानू ।

सबको अपनापन देकर के,
बिगड़ी बात बनाते नानू ।

क्या है अच्छा,और बुरा क्या,
सबको ही जतलाते नानू ।

कांटों में भी फूल खिलाकर,
सबको राह बनाते नानू ।

सारे घर,कुटुम्ब,मोहल्ले,
के पल में बन जाते नानू ।

'शरद' पुरानी पीढ़ी के पर,
नये रोज़ बन जाते नानू ।
-०-
प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
मंडला (मध्यप्रदेश)
-०-


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