॥कुछ अनकहे अल्फ़ाज़॥
(कविता)
कुछ अनकहे अल्फ़ाज़ आज मेरे होठों पर आए हैं।
ख्वाबों में आते हो तुम, तुम्हारे कई सपने सजाए हैं।
ओ मेरे सपनों के सौदागर,
कहां हो तुम?
बताओ कि हो तुम फरिश्ता या जादूगर?
नशा तुम्हारा ऐसा छाया मुझ पर
मदहोश होकर घूम रही हूं
नहीं है मुझको दुनिया की फिकर।
तोड़ो तुम भी यह खामोशी
ना जाने छाई कैसी यह मदहोशी?
कुछ अनकहे अल्फ़ाज़ मेरे में बयां कर रही हूं
अब तो मत तड़पाओ बेसब्री से तुम्हारा इंतजार कर रही हूं।
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