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Monday, 26 October 2020

*दर्द-ए-दिल* (ग़ज़ल) - माताचरण मिश्र



*दर्द-ए-दिल*
(ग़ज़ल )
मैं तो  झुकता  रहा  चोट  खाता  रहा
उठ रहे दर्द को फिर भी सहता  रहा

गम बयाँ ना किया खुद समेटे रहा
बिन हँसी के भी खुद ही मैं हँसता रहा

थी ये  कोशिश अकेले ही  लड़ता  रहूँ
जीतकर भी  मैं फिर  हार सहता  रहा

उनसे मिलकर व्यथित मेरा मन हो गया
फिर भी हँस कर के उनको हँसाता रहा

वक्त ने भर  दिया घाव दिल के  मेरे
जिस  वक्त  ने  दर्द- ए- दिल था  दिया

जिसको हर पल बुलाता रहा मैं सदा
उसने पलभर में रिश्ते को ठुकरा दिया

फरेब भरी दुनिया से ना करना तू उम्मीद
जो काँटों भरी सौगात लेकर के आई थी

छला गया अपनों से जमाने में सदा
जिनके लिए लहू को बहाए थे हमने
 
मैंने  हर  वार पर  सर  झुकाए  हुए
अपने  दिल पे  सदा वार  सहता रहा-०-

पता
माताचरण मिश्र
मुंबई (महाराष्ट्र)

-०-



***
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