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Tuesday, 27 October 2020

याद का दीपक (कविता) - सपना परिहार

 

याद का दीपक
(कविता)
याद का दीपक जलता है
कोई चुपके-चुपके पिघलता है
रहता है अक्सर तन्हाई में वो
पर मुँह से उफ़्फ़ तक न कहता है।
उम्मीद का दिया जलाया है उसने
मन मे ढेर सारी आस लिए
न सोता है वो इस इंतजार में
वो आएगा जरूर ये दिल कहता है।
सुबह सूनी है,शाम अधूरी लगती है
शायद उसकी कोई मजबूरी लगती है
अंतिम साँस तक ये दिया जलेगा
तुमसे मेरा मन ये कहता है।
उसके बिना जीवन मे अंधियारा है
उसके होने से दीवाली का उजियारा है
काली अमावस भी पूनम हो जाती है
जो वो मेरे आस-पास रहता है।
रंगोली,वन्दनवार, रोशनी ,दीपक
तुम बिन सब अधूरे से लगते है
साथ तुम हो तो श्रृंगार पूरे लगते है
देहरी पर आज भी आस का दिया जलता है
तुम जल्दी आओगे मेरा मन ये कहता है।
-०-
पता:
सपना परिहार 
उज्जैन (मध्यप्रदेश)

-०-
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***
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