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Wednesday, 2 December 2020

बेघर मजदूर (ग़ज़ल) - डॉ० धाराबल्लभ पांडेय 'आलोक'

 

बेघर मजदूर
(ग़ज़ल)
आज बेघर है दु:खी मजदूर है।
भूख से कैसे बचे मजबूर है।।

कौन विपदा से बचाए भूख से। 
आज पैदल ही भटकता दूर है।।

घर कहीं बच्चे कहीं असहाय के।
भूख से व्याकुल मगर मजबूर है।।

दूर बच्चों से तड़पता आज है।
बेबसी में आज थक कर चूर है।।

दीन की हर साँस पर जो रो पड़े।
अब दयासागर कहाँ क्यों  क्रूर है।।

छोड़ सब दौड़े चले आता  कभी।
आज वह भी क्यों बना मद चूर है।।

हे दयामय! अब शरण में हैं सभी।
आज तू ही बस  उन्हें मंजूर है।।
-०-
डॉ० धाराबल्लभ पांडेय 'आलोक'
अध्यापक एवं लेखक
अल्मोड़ा (उत्तराखंड)


***
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