🙏स्त्री भृण की गुहार🙏
(कविता )
हे प्रभु ! बताओ मेरा क्या दोष है ?
मुझ भृण को गर्भ में क्यों मारते हैं ?
मैंने किसका क्या बिगाड़ा है ?
जो भृण को निर्मम काँटते हैं ?
मुझे काँटते वक्त हाथ व हृदय
उनके क्यों कंपित नहीं होते हैं?
रूह और आँखों के करुणा-बादल
क्यूं इतना शुष्क होते हैं ?
प्रभु भृण कन्या के नाम से क्यों
परिवार में कालिमा छा जाती है ?
और लड़के के नाम से क्यों सबके
चेहरे पर लालिमा छा जाती है ?
प्रभु तेरी सिंचित संवेदना धार
कहाँ और क्यूँ मोड़ गई ?
तेरी कोमल मानवीयता
क्यूं स्वार्थ में साथ छोड़ गई ?
हे प्रभु ....!
जहाँ नहीं है करुणा,संवेदना
वहाँ मत भेजो तुम उपहार !
जहाँ है दया प्रेमभाव, संवेदना
वहाँ नहीं है क्यूँ तेरा उपकार !!
जहाँ नहीं है बेटियों का सम्मान
उसी गोद में मत डालो फूल ।
चाहे वह हो राजा या रंक ,
भुगतने दो उसके कर्म शूल ।।
संसार में कोमल कुसुम सी कन्या
प्रभु तेरा अनुपम उपहार !
व्यर्थ पुत्र मोह में माता-पिता
क्यों नहीं करते बेटी को उरहार !!
जहाँ हो समभाव की मानवता,
जहाँ हो नारी मन की पावनता ,
जहाँ हो देवियों सा मान सम्मान ,
वहाँ हो प्रभु तेरी कृपा का दान ।।
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