** मैं मुस्कुराता हूँ **
(कविता)
मैं कहां मूर्तियों में
मुस्कुराता हूँ
न दूध की बहती हुई
नदियों में नहाता हूं
अपने ऊपर चढ़ाई
मखमली चादरों में भी
मैं कहाँ लिपटाता हूं
न ही कैंडिलों की लौ में
झिलमिलाता हूं
एक पिता जब कांधे पर
बच्चे को बिठाकर
घुमाने ले जाता है
तब मैं वहां खड़ा
खिलखिलाता हूं
बनकर शिशु मैं
माँ के हाथों से
अब भी नहाता हूं
धूप से बचने को
आज भी आंचल में
उसके कहीं
छिप जाता हूं और
झुर्रियों वाले हाथों में
आशीष बन
बरस जाता हूँ
मैं कहां मूर्तियों में
मुस्कुराता हूं…...
-०-
अलका 'सोनी'बर्नपुर- मधुपुर (झारखंड)
-०-
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