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Friday, 26 March 2021

कैसे खेलूँ होली (कविता) - पता: रीना गोयल

कैसे खेलूँ होली 
(कविता)
घटा घनी आतंकी छायी , खून भरी लगती होली ।
चिर निद्रा हैं वीर धरा के ,कैसे फिर खेलूँ होली ।

धूमिल होती सब आशाएं, सो गई हैं कामनाएं ।
रुद्र गीत ही धमनियों में ,गा रही हैं वेदनाएं ।
नाचूँ गाऊँ कैसे फिर.मैं ,कैसे फिर खेलूँ होली ।
चिर निद्रा हैं वीर धरा के ,कैसे फिर खेलूँ होली ।

धरा बहाती आँसू बूंदे , सुन विलाप विधवाओं का ।
पुँछना है सिन्दूर अभी तो , कितनी ही सधवाओं का।
धरा रंग जब लाल रक्त से ,कैसे फिर खेलूँ मैं होली ।
चिर निद्रा हैं वीर धरा के ,कैसे फिर खेलूँ होली ।

जलती शहीदों की चिताएं ,है ज्वाल भरती श्वास में ।
तब ही जलेगी होलिका जब ,दुश्मन हो मृत्यु पाश में ।
घायल अभी सम्वेदनाएँ , कैसे फिर खेलूँ होली ।
चिर निद्रा हैं वीर धरा के ,कैसे फिर खेलूँ होली ।
-०-
पता:
रीना गोयल
सरस्वती नगर (हरियाणा)




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Tuesday, 23 March 2021

भावी (लघुकथा) - डा. नीना छिब्बर

भावी
(लघुकथा)
सैनिक शहीद शाहिद खान का मृत शरीर जब तिरंगे मे लिपटा हुआ उसके पैतृक गाँव पहूँचा तो अलग ही आब बिखेर रहा था। पूरा गाँव आँखों में गर्व मिश्रित दुख लिए अंतिम विदाई देने के लिए उपस्थित था । पूरा गाँव एक परिवार ही लग रहा था। नशवर शरीर को खाके सुपुर्द करने के बाद सभी शाहिद के आँगन मे लौट आये। धीरे धीरे शाहिद के जीवन मे घटित घटनाओं की बाते आरम्भ हुईं।
तभी उसके विधालय के अध्यापक श्री रामचंद्र जी ने खडे होकर सब का अभिवादन किया और कहा, आज मुझे एक पुरानी घटना याद आ रही है। लगता है. भावी ही उससे यह त्रुटि करवा रही थी। वह जब भी अपना नाम लिखता हमेशा शाहिद की जगह शहीद ही लिखता। अनेको बार समझाया पर हमेशा वर्तनी अशुदृ। मुस्कुरा कर कहता। गुरूजी यही सही है देखना आप भी अंततः इसी नाम से बुलाएंगे। वह शुरू से ही तिरंगा. सेना, और देश के वीर सपुतों की बाते करता था।
जब सेना मे भर्ती हुई तो मिलने आया था,बोला गुरु जी आप ने कितना ही समझाया पर अब तो मानते हैं मैं सही । मैने प्यार से चपत लगाते कहा., अरे, खूब आयु है तेरी पगले। जी भर देश सेवा कर। शाहिद ने कहा मास्टर जी। मेरी अशुद्ध वर्तनी रंग लाएगी देखना।
सभी भावुक हो गये और गुरू जी ने अपने शहीद खान को सेल्यूट किया।
-०-
डा. नीना छिब्बर
जोधपुर(राजस्थान)

-०-

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शहीदे आजम (कविता) - अनामिका रोहिल्ला

शहीदे आजम
(कविता)
27 सितंबर को एक युवक
इस धरती पर आया था
नाम भगत सिंह और साथ
कुछ कर गुजरने की मन में इच्छा लाया था
गांव खटकड़ कलां पंजाब से
एक साहसी युवक में आया था

अंग्रेजों से हमने खूब लड़ी लड़ाई थी
लड़ते-लड़ते भगत ने अपनी जान गवाई थी
मौत को हंसते-हंसते उसने गले लगाया था
वह एक युवक खटकड़ कला से आया था
मौत का उसको डरना था सीने में जोश जोशीला था

तुम छोड़ गए थे आजादी का सपना
जो आखिर हमने पूरा कर दिखाया था
साथ मिलकर हम ने अंग्रेजों को
पिछोर गिराया था

खूब लड़े थे आप हमारी पावन धरती के लिए
सलाम करते हैं हम आपको आपके उपकार के लिए
आपके जाने का दुख भी रहेगा
सुख होगा अपने देश के लिए
सलाम करते हैं हम आपको फिर से
जो आप एक नया जीवन दे गए हमें जीने के लिए
-०-
पता:
अनामिका रोहिल्ला
दिल्ली 
-०-

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Monday, 8 March 2021

मैं स्त्री (कविता) - श्रीमती कमलेश शर्मा


मैं स्त्री
(कविता)
मैं स्त्री हूँ......
कायनात की रचयिता,
सृष्टि का चक्र चलाती।
ममता,  धैर्य ,  भरोसे के साथ।
जो चाहती हूँ...कर सकती हूँ,
है विश्वास..।
मेरे पास हैं...कुछ ऐसी शक्तियाँ,
सम्भावनाएँ, मिसालें ,उपलब्धियाँ ।
उस पर भी...,
असंवेदनाए  पैर पसारती,
भ्रूण हत्या,ऐसिड अटैक,
अस्मिता पर हमलों से..
ख़ुद को बचाती।
समाज की निशानदेही पर रह कर भी,
ख़ुद को हारने ना देती।
झूझती रहती...।
सहती सब हँसके,
कभी ख़ामोशी से...,कभी विद्रोह  करके।
पार पा लेती हूँ..., मुश्किलों से।
चोबीस घंटो की ड्यूटी में,
ना छुट्टी लेती, ना ढिलाई बरतती ,
ना ही कोई काम टालती।
पगार के नाम पर...
बस थोड़ा सा प्यार चाहती।
बाहर की ज़िम्मेदारी से मुँह ना मोड़ती,
घरेलू दायित्वों को नहीं छोड़ती।
सृष्टि की कड़ियाँ जोड़ने की क्षमता समेटे,
तनाव जीतने की ख़ुशी लपेटे,
प्रकृति द्वारा असाधारण गुनो से नवाजी ,
ख़ुद पर भरोसा करती गई....,चलती गई।
अंतर्मन के आइने में झाँकती,
अपने को आँकती...,
मैं सृष्टि की रचयिता ,
नव निर्माण की शक्ति ,
मैं हूँ तो ये कायनात है।
चाहती हूँ....
चलती रहे ये कायनात,
क्योंकि चला सकती हूँ।
मैं धरा स्वरूपा...,जानती हूँ,
बादलों में बीज नहीं बोए जाते।
डरती नहीं किसी बात से,
देखती हूँ दुनिया,विश्वास से।
मैं....स्त्री....।

-०-
पता
श्रीमती कमलेश शर्मा
जयपुर (राजस्थान)
-०-



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नारी तुम्हें नमन (कविता) - रीना गोयल

नारी तुम्हें नमन
(कविता)
(कुकुभ छंद गीत)

जिसके  बिन जीवन मे तम है ,दीप वही  प्रकाशित नारी 
घर -आँगन जो सुरभित करती ,सुमन सुशोभित वह क्यारी।
त्याग ,समर्पण ,दया,शीलता ,सब मिल नारी बनती है।
कभी तोड़ने अहं दुष्ट का , चण्ड रूप भी धरती है ।
भिन्न -भिन्न रुपों को धारे , दुर्गा की है अवतारी  ।
घर -आँगन जो सुरभित करती ,सुमन सुशोभित वह क्यारी  ।

नारी है बहते पानी सम ,हर स्थिति में ढल जाती ।
पुत्र पले जब लाड़ चाव से ,पुत्री यूँ ही पल जाती  ।
जननी  भी है जग पालक भी ,नहीं किसी क्षण वह हारी ।
घर -आँगन जो सुरभित करती ,सुमन सुशोभित वह क्यारी ।

नमन करें इस महा शक्ति को ,नारी जग की मर्यादा ।
संस्कार की शाला नारी  , प्रेम लुटाती वह ज्यादा।
आदि काल से पूजित नारी , रहती हर नर पर भारी ।
घर -आँगन जो सुरभित करती ,सुमन सुशोभित वह क्यारी  ।
-०-
पता:
रीना गोयल
सरस्वती नगर (हरियाणा)




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लिंगवाद विरोध का प्रतीक अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (आलेख) - अमित डोगरा


लिंगवाद विरोध का प्रतीक अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

(आलेख)
8 मार्च को प्रत्येक वर्ष पूरे विश्व भर में महिला दिवस मनाया जाता है। वास्तव में यह दिवस महिलाओं को उनके योगदान को मान्यता देने के लिए मनाया जाता है। जनसंख्या के आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं की आबादी पूरे विश्व में आधी हैं, फिर भी हमारे समाज में उनको उचित दर्जा और स्थान प्राप्त नहीं है । उन पर कई तरह के अत्याचार किए जाते हैं, इसी बात को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्रीय संघ ने 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है। इस दिन पूरे विश्व में महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाता है। इसी कारण इस दिवस को लिंगवाद दिवस का प्रतीक भी माना गया है, जिससे महिलाओं को भी बिना लिंग वाद के पुरुषों के समान प्रत्येक क्षेत्र में बराबर अधिकार देने के लिए जागरूक किया जाता है। हमारे देश में भी महिलाओं की प्रगति और उत्थान के लिए भी नए-नए कार्यक्रम चलाए जाते हैं ,इसी उपलक्ष्य में, 1996 में भविष्य के लिए योजना ,1997 में महिला और शांति तालिका, 1998 में महिला और मानवाधिकार, 1999 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा से मुक्त दिवस, 2000 में शांति के लिए एकजुट महिलाएं ,2001 में महिला और शांतिः महिला का संघर्ष प्रबंधन, 2002 में आज की अफगान महिलाः वास्तविकता और अवसर ,2003 में लिंग समानता और स्त्री विकास लक्ष्य, 2004 में महिला और एचआईवी , 2005 में लिंग समानता :अधिक सुरक्षित भविष्य का निर्माण, 2006 में निर्माण लेने में महिलाएं ,2007 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करना, 2008 में महिला और लड़कियों में निवेश, 2009 में महिला हिंसा को समाप्त करने के लिए महिला और पुरुष एकजुट, 2010 में समान अधिकार, 2011 में शिक्षा, परीक्षण एवं विज्ञान में समान पहुंच, 2012 में ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाना, 2013 में वचन देना एक वचन है, 2014 में महिलाओं के लिए समानता, 2015 में महिला सशक्तिकरण, 2016 में लैंगिक समानता, 2017 कार्य की बदलती दुनिया में महिलाएं ,2018 ग्रामीण और शहरी कार्यकर्ता द्वारा महिलाओं के जीवन में बदलाव, 2020 में नारी सशक्तिकरण के नए उपलक्ष्य में है, मैं जनरेशन इक्वेलिटी महिलाओं के अधिकारों को महसूस कर रही हूं वास्तव में महिलाओं के प्रति हमारी जिम्मेदारियों को याद दिलाता है, हम सब को मिलकर महिलाओं को भी उनका अधिकार दिलाने के लिए कार्यरत रहना चाहिए। वर्तमान युग को नारी के उत्थान का युग कहां जाए, तो कोई अतिकथनी नहीं होगी, आज हमारे देश भर की महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी विजय की पताका फैला रही है और मौजूदा सरकारी भी महिलाओं को हर क्षेत्र में अपना भविष्य निर्माण करने का अवसर उपलब्ध करा रही है। महिलाओं के संदर्भ में जयशंकर प्रसाद की एक खूबसूरत कविता भी है :- नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में ,पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।

-०-
पता:
अमित डोगरा 
पी.एच डी -शोधकर्ता
अमृतसर

-०-

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Monday, 1 March 2021

आया रंगो का त्यौहार (कविता) - भुवन बिष्ट

आया रंगो का त्यौहार
(कविता)
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।।
खुशहाली आये जग में।
अब आया रंगों का त्यौहार।।
रंग भरी पिचकारी से अब।
धोयें राग द्वेष का मैल।।
ऊँच नीच की हो न भावना।
उड़े अबीर लाल गुलाल।।
होली के हुड़दंग में भी।
बाँटें मानवता का प्यार।।
खुशहाली आये जग में।
अब आया रंगों का त्यौहार।।
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।।
गुजिया मिठाई की मिठास से।
फैले अब खुशियों की बहार ।।
आओ रंगों की पिचकारी से।
धोयें जग का अत्याचार।।
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।।
खुशहाली आये जग में।
है आये रंगों का त्यौहार।।
बसंत बहार के रंगों से।
ओढ़े धरती है पीतांबरी।।
ईष्या राग द्वेष को त्यागें।
सीचें मानवता की क्यारी।।
रूठे श्याम को भी मनायें।
रंगों से खुशियाँ फैलायें।।
रंगों और पानी से सीखें।
झलक एकता की दिखलायें।।
मानवता का अब हो संचार।
बहे सुख समृद्धि की धार।।
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।।
खुशहाली आये जग में।
अब आया रंगों का त्यौहार।।

-०-
पता- 
भुवन बिष्ट
(रानीखेत) अल्मोड़ा 
(उत्तराखंड)
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सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

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