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Tuesday 12 November 2019

तलाकनामा (कहानी) - जीतू कुमार गुप्ता 'जीत'


तलाकनामा
(कहानी)
मोनिका और कमल कोर्ट के बाहर तलाक के कागज हाथ में लिये खडे थे। अचानक उनका बेटा (बंटी) पापा-पापा कहते हुए मोनिका से हाथ छुडाते हुए कमल के गोद में जा उठा। दोनों कोई ढाई वर्ष बाद मिले थे। मोनिका बेटे को घसीटते हुए अपने साथ ले गयी। कमल मुक आंखो से देखता रह गया। मोनिका को ढाई वर्ष पूर्व की घटना याद आ गयी जब जज साहब ने दोनों को अलग –अलग रह्ने की मोहल्त दी थी। दोनो साथ ही कोर्ट से बाहर निकले। दोनो के परिजन साथ थे । और उनके चेहरे पर विजय और एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या और घमण्ड के निशान साफ झलक रहे थे। लेकिन मोनिका और कमल अपने ईच्छा के विरुद्ध एक दूसरे को देख कर जैसे नजरे चुरा रहें हो, पर दोनों की मुक आंखें कुछ और ही बया कर रही थी । ढाई साल की लंबी लड़ाई के बाद आज फैसला आने वाला था, दोनों के परिजन आज से चैन की सांस लेगें, पर मोनिका, कमल के मन में अलग ही द्वंद्व चल रहा था ।

आज शादी के तीन साल बाद कटघरे में खडी-खडी मोनिका सोच रही थी । वो लम्हा जब कमल मेरा गौना कराके मुझे लेने आये थे। तो अनायस ही चेहरे पर मुस्कान तैरने लगती है। पहली बार किसी अजनबी के साथ अकेले सफर पर जाना, वो भी बैलगाड़ी में। जितना बैलगाड़ी हिलती थी उतना ही मैं और शरमा जाती थी और सिमट के बैठ जाती थी । वो मुरझाई हवा भी जैसे मुझसे कोई दुश्मनी निकाल रही थी, बार बार पल्लू उड़ाये दे रही थी। मैंने कनखियों से जितनी बार झाँककर देखा उनको अपनी ओर शरारती निगाहों से देखते ही पाया।

बीच-बीच में कमल के वकील - बच्चलन है ये लडकी कमल की जिंदगी बर्बाद कर दी है। घबराहट और पसीने से तरबतर हो रही थी। उम्र भी क्या थी मेरी बस यही कोई १७ बर्ष भला सात फेरों और कुछ विवाह की रस्मों में कोई किसी को कितना जान सकता है। पहले फोन की सुविधा कहाँ थी जो एक दूसरे से बात कर पाते। और तो और अब तो लड़की-लड़के की पसन्द भी नही देखी जाती थी। हमारा रिश्ता तो घर के बड़ों ने तय किया था । शादी में मैं लम्बे घूँघट में थी और उनका चेहरा सेहरे के पीछे था। हमने तब भी एक दूसरे को नहीं देखा था। आज से चार –पांच साल पहले औरतों को लज्जा, शर्मोहया जैसे शब्द बचपन से रटा दिये जाते थे। अब तो खुल्लमखुल्ला फोन पर पूरी रात बतिया लिया करते है। अरे और तो और रिश्ता तय होते ही लड़का- लड़की को आपस में मिलना जुलना भी हो जाता है। पर हमारा जमाना अलग था। हमारे जमाने में बिल्कुल आजादी नहीं थी।

तीन साल हो गए थे शादी को मग़र साथ में कुछ महीनें ही रह पाए थे। ढाई साल तो तलाक की कार्यवाही में लग गए। आखिर वो समय आ ही गया जिसका इंतेजार दोनों पक्ष पिछ्ले ढाई साल से करते आ रहे थे । जज साहब ने अपना फैसला सुनाया- दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत इस नतीजे पे पहुची है कि दोनों पक्ष अपना-अपना समान, गहने ले–ले और बंटी जिसके साथ चाहे रह सकता है। तलाक की मंजूरी मिल जाती है । मोनिका के हाथ मे दहेज के समान की लिस्ट थी जो अभी कमल के घर से लेना था और कमल के हाथ मे गहनों की लिस्ट थी जो मोनिका से लेनी थी।

मोनिका अपने पिता के साथ कमल के घर पहुंची । दहेज में दिए समान की निशानदेही मोनिका को करनी थी। पूरे तीन वर्ष बाद ससुराल जा रही थी। लेकिन मन के किसी कोने में एक गुब्बार के साथ-साथ वहां की यादे भी थी लेकिन शायद आखरीबार ससुराल जा रही है, उसके बाद कभी नही जाना था उधर।

जैसे ही मैं कमल के घर पहुंची आसपास के सारे लोग जमा हो गये, तीन साल पहले यही वह दुवार था जब लोग मुझे देखने के लिये आसपास की औरते घुंघट के नीचे झांका करती ।पर आज की स्थिति कुछ और थी लोग ऐसे देख रहे थे मानों मैंने किसी का कत्ल के जुर्म की सजा काट कर वापस लौटी हूं ।

कमल घर में अकेला ही रहता था। मां-बाप और भाई आज ही गांव से लौटे थे ।

घर मे परिवेश करते ही पुरानी यादें ताज़ी हो गई। कितनी मेहनत से सजाया था इसको मैंने। एक एक चीज में उसकी जान बसी थी। सब कुछ उसकी आँखों के सामने बना था। एक एक ईंट से धीरे धीरे बनते घरोंदे को पूरा होते देखा था । आज उसी घर को टूटते देख आंखे और मन भर आयी । सपनो का घर था उनका । कितनी शिद्दत से उन्होंने उसके सपने को पूरा किया था, और मैं भी उस वचल को पूरा करने का वादा की थी, साथ फेरे का क्या कोई महत्व नहीं खैर अब तो फैसला हो चुका है । शायद यही नियती है ।

कमल बोला- "ले लो जो कुछ भी चाहिए मैं तुझे नही रोकूंगा" आखिर लाया भी तो था तेरे लिये जब तू ही नही..................

मोनिका ने बरे गौर से कमल के आंखों मे कुछ ढुंढने का प्रयास कर रही थी । तीन साल में कितना बदल गया है। बालों में सफेदी झांकने लगी है। शरीर पहले से आधा रह गया है। तीन साल में चेहरे की रौनक गायब हो गई। वह घर के स्टोर रूम की तरफ बढ़ी जहाँ उसके दहेज का अधिकतर समान पड़ा था। सामान ओल्ड फैशन का था इसलिए कबाड़ की तरह स्टोर रूम में डाल दिया था। मिला भी कितना था उसको दहेज। घर वाले तो मजबूरी में विवाह कर दिये थे। प्रेम और घमण्ड के बीच में “मैं” की भावना जो हावी हो गयी थी ।

बस एक बार शराब पीकर बहस हो गयी थी । हाथ उठा बैठा दिया था मुझपर। बस गुस्से में मायके चली गई थी। फिर चला था लगाने सिखाने का दौर । इधर कमल के भाई भाभी और उधर मोनिका की माँ। नोबत कोर्ट तक जा पहुंची और नतीजा तलाक तक । कमल की मां बहुत समझाई बेटी –‘छोटी-छोटी बात पर घर थोडे छोडा जाता है’ । हमारे समय में मर भी जाओ तो सास- ससुर का घर ही अपना होता था ।

लेकिन न मोनिका लौटी और न कमल लाने गया। लेकिन मां ने एक बार कोशीश भी की थी लेकिन मोनिका की मां और आसपास के लोग अपने अह्म के आगे किसी की न चलने दी । आखिर स्त्री की दुश्मन स्त्री ही तो होती है मर्द तो युही बदनाम है ।

मोनिका के पिता “बोले" कहाँ है तेरा सामान? इधर तो नही दिखता। बेच दिया होगा इस शराबी ने ?"
"चुप रहो पापा"
मोनिका को न जाने क्यों कमल को उसके मुँह पर शराबी कहना अच्छा नही लगा।फिर स्टोर रूम में पड़े सामान को एक एक कर लिस्ट में मिलाया गया। बाकी कमरों से भी लिस्ट का सामान उठा लिया गया। मोनिका ने सिर्फ अपना सामान लिया कमल के समान को छुवा भी नही। फिर मोनिका ने कमल को गहनों से भरा बैग पकड़ा दिया।

कमल ने बैग वापस मोनिका को दे दिया " रखलो, मुझे नही चाहिए काम आएगें तेरे मुसीबत में।" और जब तुम ही नही रही तो फिर .............
"क्यूँ, कोर्ट में तो तुम्हरा वकील कितनी दफा गहने-गहने, बच्चलन आदि क्या-क्या चिल्ला रहा था"
"कोर्ट की बात कोर्ट में खत्म हो गई, मोनिका । वहाँ तो मुझे भी दुनिया का सबसे बुरा जानवर और शराबी,पीयक्कर साबित किया गया है।"
सुनकर मोनिका की पिता ने नाक भों चढ़ाई।
"नही चाहिए”।
"क्यूँ?" कहकर कमल खड़ा हो गया। इसी के लिये तीन साल किच-किच और तलाक करवाया आपने। इतना कहते ही कमल की आंखे ड्ब्डबा गयी आंखों में कुछ उमड़ा होगा जिसे छुपाना भी जरूरी था। जिसे वह छुपाने का प्रयास करने लगा ।
"बस यूँ ही" मोनिका ने भी मुँह फेर लिया।
"इतनी बड़ी जिंदगी पड़ी है कैसे काटोगी ? ले जाओ,,, काम आएगें।"
इतना कह कर कमल ने भी मुंह फेर लिया और दूसरे कमरे में चला गया।
मोनिका को मौका मिल गया। वो कमल के पीछे उस कमरे में चली गई। वो रो रहा था। अजीब सा मुँह बना कर। जैसे भीतर के सैलाब को दबाने की जद्दोजहद कर रहा हो। मोनिका ने उसे कभी रोते हुए नही देखा था। आज पहली बार देखा न जाने क्यों दिल को कुछ सुकून सा मिला।
मग़र ज्यादा भावुक नही हुई।
सधे अंदाज में बोली "इतनी फिक्र थी तो क्यों दिया तलाक?"
"मैंने नही दिया तलाक,तुमने दिया"
"दस्तखत तो तुमने भी किए"
"मनाने तो नही आये कभी ?"
"मौका कब दिया तुम्हारे घर वालों ने। जब भी फोन किया काट दिया।"
"घर भी आ सकते थे"?
"हिम्मत नही थी?"
इतने में मोनिका के पिता आ गये। वो उसका हाथ पकड़ कर बाहर ले गए। "अब क्यों मुँह लग रही है इसके ? क्या रिश्ता है अब सब खत्म हो गया"
मोनिका के भीतर भी कुछ टूट रहा था। दिल बैठा जा रहा था। वो सुन्न सी पड़ती जा रही थी। जिस सोफे पर बैठी थी उसे गौर से देखने लगी। कैसे कैसे बचत कर के कमल ने वो गले का चेन खरीदा था। पूरे शहर में घूमी तब यह पसन्द आया था।" टेबल पर अस्त-व्यस्त पडे हुए थे । फिर उसकी नजर सामने तुलसी के सूखे पौधे पर गई। कितनी शिद्दत से देखभाल किया करती थी। तुलसी भी घर छोड़ गई।

घबराहट और बढ़ी तो वह फिर से उठ कर भीतर चली गई। पिता ने पीछे से पुकारा मग़र उसने अनसुना कर दिया। कमल बेड पर उल्टे मुंह पड़ा था। एक बार तो उसे दया आयी उस पर। मग़र वह जानती थी कि अब तो सब कुछ खत्म हो चुका है इसलिए उसे भावुक नही होना है। उसने सरसरी नजर से कमरे को देखा। अस्त व्यस्त हो गया है पूरा कमरा। कहीं कहीं तो मकड़ी के जाले झूल रहे हैं। टेबल पर शर्ट –पैंट बिखरे पडे थे । सिगरेट की पैकेट और शराब की बोतल पलंग के नीचे पडे हुए थे ।

कितनी नफरत थी उसे मकड़ी के जालों से ?
फिर उसकी नजर चारों और लगी उन फोटो पर गई जिनमे वो कमल से लिपट कर मुस्करा रही थी।कितने सुनहरे दिन थे वो। इतने में पापा फिर आ गए। हाथ पकड़ कर फिर बाहर ले गए।

बाहर गाड़ी आ गई थी। सामान गाड़ी में डाला जा रहा था। मोनिका सुन सी बैठी थी। कमल गाड़ी की आवाज सुनकर बाहर आ गया।
मोनिका बोली- “जा रही हूं अपना ख्याल रखना” ।और मोनिका की आंखों से अश्रु की धारा बहने लगी। बिना पीछे मुडे तेजी से दहलीज पार कर ही रही थी कि कमल बोला— मोनि "मेरे बिना रह सकोगी ? "
शायद यही वो शब्द थे जिन्हें सुनने के लिए तीन साल से तड़प रही थी। सब्र के सारे बांध एक साथ टूट गए। मोनिका ने कोर्ट के मिले तलाकनामा निकाली और फाड़ दिया ।
और मां कुछ कहती उससे पहले ही कमल से लिपट कर मोनिका फूट-फूट कर रोने लगी। मुझे माफ कर दो कमल । साथ में दोनो बुरी तरह रोते जा रहे थे । और मां भरी आंखों से देखती रह गयी ।
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पता:
जीतू कुमार गुप्ता 'जीत'
होजाई (असम)
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