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Tuesday, 12 November 2019

नींव की ईंट (कहानी) - गिरधारी विजय 'अतुल'

नींव की ईंट
(कहानी)
उसे इस शहर में आए हुए कुछ महीने ही हुए थे। गाँव में आई भयंकर बाढ़ ने इस साल भी उसकी सारी फसल को चैपट कर दिया था। पिछले तीन साल से लगातार भारी बाढ़ उसकी फसल के लिए राहु-केतू बने हुए थीं। प्रकृति की भी अजीब लीला है-कहीं घोर अकाल से धरती एक बूँद पानी को भी तरस जाती है, तो कहीं-कहीं अथाह जल-भंडार से वह अपना संतुलन खो बैठती है। इन तीन सालों में अत्यधिक ऋण के कारण उसकी कमर टूट गई थी। उसकी माली हालत बद से बदतर हो गई थी। कल का अन्नदाता कहा जाने वाला किसान, आज दो वक्त की रोटी के लिए तरस गया। सो, दो बीघा खेत को मजबूरन औने-पौने दामों में बेचकर सारा कर्जा उतारा। इकलौता तीस साल का बेटा अपनी पत्नी-बच्चों संग इन हालातों को देखकर गाँव छोड़कर पराये शहर कमाने चला गया। जो आज दिन तक वापिस नहीं लौटा। थोड़ा बहुत बचा हुआ पैसा पत्नी की बीमारी में जाता रहा परंतु पत्नी भी उसका साथ छोड़कर परलोक सिधार गई। समय के साथ उसके नजदीकी रिश्तेदारों ने भी मुँह फेर लिया। 

इस शहर में वह मकानों के निर्माण कार्य में मजदूरी करता है। कच्ची बस्ती में किराये का कमरा लेकर रहता है। पहले वह बेलदारी किया करता था। सीमेंट-रोड़ी-बजरी की पाराती उठाया करता था। पचास वर्ष की अवस्था में शरीर को बुरी तरह थका देने वाला यह काम। थकान ऐसी कि रात को खाना खाने के पष्चात् जमीन पर लेटते ही गहरी नींद। सच है-नींद केवल सच्ची मेहनत और थकान की दासी है, मखमली बिस्तर की नहीं। धीरे-धीरे वह कुषल कारीगर हो चला था। इतना कुषल कि नींव से निर्माण तक पूरा मकान नई-नई डिजायन में बना या बनवा सकता था। उसे आर्टिटेक्चर कोई डिजायन दे तो वह बड़ी प्रवीणता तथा बुद्धिमता से किसी भी मकान को मनचाहा आकार दे सकता है। उसके आर्थिक हालात शैनेःशैनेः सुधरने लगे है। अब उसने अच्छी कालोनी में कमरा किराये पर ले लिया है। 

एक दिन एक अच्छा अवसर उसके हाथ लगा। उसे किसी बड़े उद्योगपति का तीन मंजिला बंगला बनाने का आर्डर मिला। अब बाजार में उसकी पैठ हो गई थी। भवन निर्माण से संबंधित माल बेचने वाले दुकानदार उसे जानने लगे थे। अब मजदूर उसके अधीन काम किया करते थे। मुख्य ठेकेदार से बातचीत के बाद बंगले का काम प्रारंभ हुआ। उसके कुषल निर्देषन में बंगला धीरे-धीरे अपना सुंदर आकार लेता गया। आर्टिटेक्चर के नक्षानुसार वह बंगले का निर्माण करता चला गया। दूसरी ओर वास्तुकार के दिशा-निर्देशों का भी उसने पूरी तरह पालन किया। हाल, कमरे, बैडरूम या रसोई किस दिशा में होने चाहिए, कैसे होने चाहिए, उसने सब वैसे ही बनाया। पूरा तीन मंजिला बंगला सीमेंट-प्लास्टर सहित खड़ा कर दिया। अब उसका बंगले में कोई काम शेष नहीं रह गया था। मकान के श्रृंगार के दूसरे काम जैसे-टाईल्स, मार्बल, ग्रेनाइट, सेनैट्री, कलर आदि का जिम्मा दूसरे कारीगरों को दिया गया। 
पोष का महीना। रात्रि आठ बजे का समय। बर्फीली हवाएँ चल रही हैं। आज इस बंगले का गृह-प्रवेश है। पूरा बंगला रंग-बिरंगी तथा सुनहरी लाईट की झालरों से जगमगा रहा है। बंगले के बाहर दो पहिया वाहनों की अपेक्षा चैपहिया वाहनों की लंबी कतारें हैं। बंगले के गेट पर मालिक अपनी पत्नी संग मेहमानों के स्वागत के लिए आतुर हैं। बंगले निर्माण से जुड़े सभी लोग आए हुए हैं। जैसे चित्रकार-जिसकी पैंटिंग्स को भवन मालिक ने महँगे दामों में खरीदकर भीतर सजाया है। शिल्पकार-जिसकी मूर्तियों को खरीदकर डाइनिंग हाल को बहुत खूबसूरत बनाया गया है। बागवान-जिसने बंगले के अंदर स्थित गार्डन को अपनी कलाकारी से बेहतरीन बनाया। वास्तुकार-जिसने सारे वास्तु-दोषों को खत्म करने का दावा करते हुए बंगले से हर प्रकार का संकट खत्म हो जाने की बात कही है। 

सुबह से वह फोन की प्रतीक्षा कर रहा है। उसे विश्वास था कि गृह-प्रवेश के लिए मालिक उसे जरूर याद करेंगे। दिन भर काम से थका-हारा अपने कमरे में वह खाना खाकर कंबल ओढ़कर सोने का प्रयास करता है। मगर आज उसे वैसे वाली मीठी नींद नहीं आ रही है, जैसी रोज आया करती है। आखिरकार यही विचार-मंथन करते हुए उसे नींद आ गई-‘‘क्या नींव की ईंट का कोई महत्व नहीं है? सिर्फ कंगूरा ही किसी भवन की शोभा बढ़ाता है? क्या एक किसान या मजदूर को सृजनकार कहलाने का अधिकार नहीं है? एक मजदूर जिसने पहली ईंट से लेकर आखिरी ईंट तक अपना पसीना बहाया, क्या उसका कोई मूल्य नहीं है?’’
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पता:
गिरधारी विजय 'अतुल'
जयपुर (राजस्थान)

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1 comment:

  1. बहुत सुन्दर वाकई सतही तौर पर कोई आन्तरिक नही बाहरी आकर्षण को तरजीह देता है

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