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Tuesday, 12 November 2019

भयादोहन (कविता) - राजु बड़ो


भयादोहन
(कविता)

यह जिंदगी का एक अनोखा हिस्सा है
यह बनाती नई नई किस्सा है
सदियों से चली आ रही दुश्कर्म है
छल का दूसरा अंदीज है।
कभी अपनों का कभी गैरों का
यह शिकार का अचुक खंजर है
वार इसका कभी खाली नही जाती
जब तक समझे सब कुछ खो देती है।
स्वार्थ, गरुर और नफरत का
यह एक ब्रम्हास्त्र है
कभी न उभर पानेवाला गहरी घई है
जिसका इंतकाम भी तबाही ही होती है।
जाने अनजाने हम इसके शिकार होते हैं
समझौता भरी जिंदगी जीते हैं
दाँव पर हमारी जिंदगी लगी होती है
बाजी कोई जीत लेता है।
बिन जंजीर के हम गुलाम बन जाते हैं
बाहर होकर भी सलाखों के अंदर जीते हैं
चाहे हम किसी की बोझ न बने हो
आखिर में हम बोझ ढोकर ही जीते हैं।
यह दयादोहन भरी जिंदगी है
यह समझौता भरी जिंदगी है
जीने की चाह मे हम झेल लेते हैं
पर पल पल में हम मरते रहते हैं।
-०-
पता :
राजु बड़ो
माजबाट (असम)

-०-

***
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1 comment:

  1. अंदीज ~अंदाज
    दयादोहन ~ भयादोहन।

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