सेवा और मेवा
(बाल-कहानी)
(बाल-कहानी)
दो लड़के थे। एक का नाम था सेवा, दूसरे का मेवा। दोनों पड़ोसी थे और एक ही स्कूल में पढ़ते थे। सेवा पढ़ने-लिखने में बहुत तेजथा। उसका स्वभाव भी बहुत अच्छा था। वह हमेशा अपने से बड़ों का आदर करता। दूसरों की मदद करता। लाचार और असहाय लोगों कीसेवा करता। परन्तु सेवा स्वभाव और मन से जितना अच्छा था, शकल-सूरत से उतना ही बदसूरत था। काला रंग और चेहरे पर चेचक केदाग तो थे ही, वह एक आँख का काना भी था।
दूसरी तरफ मेवा गोरा-चिट्टा और काफी खूबसूरत था। गोल-मटोल चेहरा, चंचल-मासूम आँखें और घुँघराले बाल। बस जो देखे,देखता ही रह जाय। लेकिन मेवा शकल-सूरत से जितना खूबसूरत था। मन और स्वभाव से उतना ही गंदा था। पढ़ने-लिखने में हमेशाफिसड्डी रहता। कभी अपना काम पूरा नहीं कर पाता। रोज नए-नए बहाने बनाता। दूसरों को सताने और गरीब-असहाय लोगों का मजाकबनाने में उसे बहुत मजा आता। वह सेवा को भी बहुत परेशान करता। अपने दोस्तों के बीच उसकी हँसी उड़ाता। काना-खोथरा कहकर उसेचिढ़ाता।
सेवा पर इन सब बातों का कोई असर नहीं पड़ता। वह कभी किसी बात से न तो चिढ़ता, न परेशान होता। मेवा और उसके दोस्तसाइकिलों से स्कूल आते-जाते थे। सेवा के पास साइकिल नहीं थी। वह पैदल ही आता-जाता था। एक बार सेवा रोज की तरह पैदल जा रहाथा। पीछे से मेवा और उसके दोस्त साइकिलों से घंटी बजाते हुए आ गये। सेवा गलियारे से हटकर बिल्कुल किनारे खड़ा हो गया। मेवाउसके बगल से निकला और एक झापड़ सेवा की कनपटी पर मारते हुए बोला- ”हट बे काना। देखता नहीं हमारी सवारी आ रही है।'' फिर सबखिलखिला कर हँसते हुए आगे निकल गए।
उस दिन के बाद जब कभी मेवा साइकिल से आता दिखाई पड़ता तो सेवा गलियारे से हटकर खेत की मेड़ पर खड़ा हो जाता। मेवाऔर उसके दोस्त बड़ी शान से घंटी बजाते हुए चले जाते। सेवा हमेशा यही कोशिश करता कि स्कूल को छोड़कर वह मेवा के सामने न पड़े।सुबह के समय तो वह हमेशा बचने की कोशिश करता। क्योंकि कई बार मेवा उसे अपमानित कर चुका था। जब कभी सुबह-सुबह वह मेवाके सामने पड़ता तो वह उसे खूब भद्दी-भद्दी गालियाँ देता। कहता- ”फिर आ गया कानी आँख लेकर। पूरा दिन खराब कर दिया। मारूँगा एककन्टाप।''
गालियाँ सुनकर सेवा को बहुत दुख होता, पर कहता कुछ नहीं। झगड़ा और गाली-गलौज करना उसके स्वभाव में नहीं था। वहइन सब बातों से दूर अपना पूरा ध्यान पढ़ाई-लिखाई में लगाता। स्कूल के अध्यापक उससे बहुत खुश रहते |
छमाही परीक्षा समाप्त हो चुकी थी। उसके बाद स्कूल का वार्षिक उत्सव मनाया गया। कई तरह के खेल-कूद हुए। सेवा ने हरेक मेंभाग लिया। उत्सव में इनाम भी बाँटे गये। मेवा तो रहा फिसड्डी किस्म का हठी। उसे कुछ नहीं मिला, जबकि सेवा को कई इनाम मिले।हर प्रतियोगिता में उसे पहला इनाम मिला। स्कूल के आदर्श विद्यार्थी के रूप में भी उसे पहला इनाम मिला। अध्यापकों ने उसकी खूबतारीफ की।
मेवा को केवल ऊँची कूद में ही तीसरा इनाम मिल सका। बाकी सब में फिसड्डी रह गया। छमाही परीक्षा में भी वह फेल हो गयाथा। हर चीज में अपने पीछे रह जाने का उसे इतना दुख नहीं हुआ, जितना सेवा की तारीफ सुनकर हुआ। वह जल-भुन गया और मन हीमन सेवा को नीचा दिखाने की तरकीबें सोचने लगा।
इसका मौका भी उसे जल्दी ही मिल गया। एक दिन सेवा पैदल स्कूल जा रहा था। गाँव और स्कूल के बीच एक नदी पड़ती थी।नदी पर पुल था। पुल काफी पुराना था। जगह-जगह उसकी रेलिंग टूटी हुई थी। इस समय सेवा उसी पुल पर से गुजर कर स्कूल जा रहा था।उसी समय पीछे से घंटी बजाते हुए अपने दोस्तों के साथ मेवा आ पहुँचा। मेवा को आते देख वह पुल पर बिल्कुल किनारे आकर खड़ा होगया। क्या करता ? पुल से बाहर भागने की जगह भी नहीं थी।
सेवा को इस तरह खड़े देखकर वे सब खिलखिलाकर हँस पड़े। मेवा उसके बिल्कुल बगल से निकला और साइकिल पर से हीकसकर एक लात सेवा की कमर पर जड़ दिया। लात का वार इतना भरपूर था कि सेवा सम्भल नहीं पाया। लड़खड़ा कर नदी में गिर पड़ा।नदी का बहाव काफी तेज था। सेवा एक बार तो नदी की गहराई में बिल्कुल नीचे चला गया, लेकिन ऊपर आते ही हाथ पैर चलाने लगा। वहतैरना जानता था। धीरे-धीरे किनारे की ओर बढ़ने लगा।
मेवा और उसके दोस्त साइकिलों से उतर कर तमाशा देख रहे थे। तालियाँ पीट-पीटकर हँस रहे थे। सेवा कुछ देर में तैरकर बाहरआ गया। वह ठंड से काँप रहा था। कपड़े तो सब भीग ही गये थे, बस्ते की सारी काँपी-किताबें भी भीग गई थीं। इस हालत में स्कूल तो जानहीं सकता था। दुखी मन से घर की ओर लौट पड़ा। मेवा और उसके दोस्त उसे इस तरह लौटते हुए देखकर बहुत खुश हुए।
गनीमत यही हुई कि सेवा पुल के पूरब तरफ गिरा था। अगर पश्चिम तरफ गिरता तो बच पाना मुश्किल हो जाता, क्योंकि इसतरफ बहुत गहरी भँवर थी। वहाँ हर समय पानी खूब तेजी से घूमता रहता था। उसमें जो फँस गया, वह आज तक जिन्दा नहीं बचा। मेवाकी आज की यह हरकत जानलेवा थी। इससे सेवा को बहुत दुख हुआ, लेकिन उसने कहीं कोई शिकायत नहीं की। न घर में, न स्कूल में। वहरोज की ही तरह स्कूल आता-जाता रहा।
इसके कुछ दिन बाद एक घटना अपने आप हो गई। मेवा और उसके दोस्त स्कूल से लौट रहे थे। वे बीचो-बीच पुल से गुजर रहे थे।उसी समय पता नहीं कहाँ से सामने से एक मरकहा बैल उछलता-कूदता आ गया। वह रस्सी तुड़ाकर आया था। गुस्से से फुँफकार रहा था।मेवा और उसके दोस्त यह मुसीबत देखकर घबड़ा गये। बैल से बचने की कोशिश करने लगे। किनारे की ओर साइकिलें लेकर भागे। बैल तोफुँफकारता हुआ उस पार निकल गया, लेकिन मेवा अपने को सम्भाल नहीं पाया। वह हड़बड़ाहट में साइकिल सहित नदी में जा गिरा।जिधर मेवा गिरा था, उस तरफ भँवर थी। वह उसी भँवर में साइकिल सहित फँस गया। यह देखकर मेवा के दोस्तों के होश उड़ गये। वेबचाओ-बचाओ करके शोर मचाने लगे। कुछ और लोग इकट्ठा हो गये। सभी हाय-हाय कर रहे थे। भँवर में कूदने की हिम्मत किसी की नहींथी।
उसी समय सेवा भी स्कूल से लौट रहा था। पुल पर भीड़ देखकर वह और तेजी से लपका। वहाँ झाँककर देखा तो सन्न रह गया।उसने एक पल कुछ सोचा, फिर बस्ता उतार कर रख दिया। परन्तु जैसे ही कूदने चला, वैसे एक आदमी ने उसे पकड़ लिया। उस आदमी नेकहा- ”तुम पागल हो गये हो क्या ? क्यों अपनी जान देना चाहते हो ? इस भँवर में फँस कर कभी कोई जिन्दा नहीं बचा। वह तो मर ही रहाहै, तुम क्यों मुफ्त में अपनी जान देने जा रहे हो ?“
सेवा के पास यह सब सोचने का समय नहीं था। उस समय एक-एक पल कीमती था। उसने उस आदमी को झटक दिया और नदीमें कूद पड़ा। सब लोग हक्का-बक्का रह गए। मेवा के दोस्त भी अवाक् रह गये। सेवा तो जानबूझ कर मौत के मुँह में कूद पड़ा। मेवा कोबचाने के चक्कर में वह भी उसी भँवर में पड़कर नाचने लगा। हाथ-पैर चलाने की सारी कोशिशें बेकार हो रही थीं। लेकिन सेवा ने हिम्मतनहीं हारी। कुछ पलों की कोशिश के बाद उसकी मुट्ठी में मेवा के बाल आ गये। अब सेवा उसके बाल खींचते हुए बाहर निकलने की कोशिशकरने लगा। लेकिन जैसे ही वह निकलने के लिए जोर लगाता, भँवर फिर उसे समेटकर नीचे गिरा देती। मेवा तो अब तक बेहोश हो चुकाथा। सेवा को भी ऐसा लगने लगा था कि अब वह नहीं बच पाएगा। हाथ-पैर जवाब देने लगे थे। आखिरी बार उसने फिर एक कोशिश की।शरीर की पूरी ताकत लगाकर बाहर की ओर उछाल मारी। और इस बार वह भँवर से बाहर निकल आया। पुल पर खड़े लोगों को भी आशाबँधी। वे साँस रोके यह सब देख रहे थे।
सेवा काफी थक चुका था। वह धीरे-धीरे तैरकर मेवा को खींचते हुए किनारे की ओर बढ़ने लगा। लोगों की भीड़ भी पुल से उतर करनदी के किनारे इकट्ठी हो गई। कुछ ही देर में सेवा, मेवा को खींचते हुए किनारे आ गया। मजे की बात यह थी, कि मेवा की साइकिल उसकेपैर में फँस गई थी। वह भी साथ में निकल आई थी। अब तक लोगों की भीड़ काफी बढ़ गई थी | गाँव से भी काफी लोग आ गये थे। मेवा तोबेहोश था ही, सेवा की भी हालत खराब थी। लोगों ने मेवा को उल्टा करके दबा-दबा कर उसके शरीर से पानी निकाला।
काफी देर बाद मेवा को होश आया। उसने अपने चारों ओर देखा। काफी लोग खड़े थे। उसके माँ-बाप भी थे। एक तरफ उसके दोस्तथे। दूसरी तरफ सेवा खड़ा हुआ मुस्करा रहा था। मेवा धीरे से उठा और सेवा से चिपटकर सुबक-सुबक कर रोने लगा। उसके दोस्त भी मुँहलटकाए आँसू टपका रहे थे। उस दिन से मेवा, सेवा को अपने भाई की तरह मानने लगा।
-०-
दूसरी तरफ मेवा गोरा-चिट्टा और काफी खूबसूरत था। गोल-मटोल चेहरा, चंचल-मासूम आँखें और घुँघराले बाल। बस जो देखे,देखता ही रह जाय। लेकिन मेवा शकल-सूरत से जितना खूबसूरत था। मन और स्वभाव से उतना ही गंदा था। पढ़ने-लिखने में हमेशाफिसड्डी रहता। कभी अपना काम पूरा नहीं कर पाता। रोज नए-नए बहाने बनाता। दूसरों को सताने और गरीब-असहाय लोगों का मजाकबनाने में उसे बहुत मजा आता। वह सेवा को भी बहुत परेशान करता। अपने दोस्तों के बीच उसकी हँसी उड़ाता। काना-खोथरा कहकर उसेचिढ़ाता।
सेवा पर इन सब बातों का कोई असर नहीं पड़ता। वह कभी किसी बात से न तो चिढ़ता, न परेशान होता। मेवा और उसके दोस्तसाइकिलों से स्कूल आते-जाते थे। सेवा के पास साइकिल नहीं थी। वह पैदल ही आता-जाता था। एक बार सेवा रोज की तरह पैदल जा रहाथा। पीछे से मेवा और उसके दोस्त साइकिलों से घंटी बजाते हुए आ गये। सेवा गलियारे से हटकर बिल्कुल किनारे खड़ा हो गया। मेवाउसके बगल से निकला और एक झापड़ सेवा की कनपटी पर मारते हुए बोला- ”हट बे काना। देखता नहीं हमारी सवारी आ रही है।'' फिर सबखिलखिला कर हँसते हुए आगे निकल गए।
उस दिन के बाद जब कभी मेवा साइकिल से आता दिखाई पड़ता तो सेवा गलियारे से हटकर खेत की मेड़ पर खड़ा हो जाता। मेवाऔर उसके दोस्त बड़ी शान से घंटी बजाते हुए चले जाते। सेवा हमेशा यही कोशिश करता कि स्कूल को छोड़कर वह मेवा के सामने न पड़े।सुबह के समय तो वह हमेशा बचने की कोशिश करता। क्योंकि कई बार मेवा उसे अपमानित कर चुका था। जब कभी सुबह-सुबह वह मेवाके सामने पड़ता तो वह उसे खूब भद्दी-भद्दी गालियाँ देता। कहता- ”फिर आ गया कानी आँख लेकर। पूरा दिन खराब कर दिया। मारूँगा एककन्टाप।''
गालियाँ सुनकर सेवा को बहुत दुख होता, पर कहता कुछ नहीं। झगड़ा और गाली-गलौज करना उसके स्वभाव में नहीं था। वहइन सब बातों से दूर अपना पूरा ध्यान पढ़ाई-लिखाई में लगाता। स्कूल के अध्यापक उससे बहुत खुश रहते |
छमाही परीक्षा समाप्त हो चुकी थी। उसके बाद स्कूल का वार्षिक उत्सव मनाया गया। कई तरह के खेल-कूद हुए। सेवा ने हरेक मेंभाग लिया। उत्सव में इनाम भी बाँटे गये। मेवा तो रहा फिसड्डी किस्म का हठी। उसे कुछ नहीं मिला, जबकि सेवा को कई इनाम मिले।हर प्रतियोगिता में उसे पहला इनाम मिला। स्कूल के आदर्श विद्यार्थी के रूप में भी उसे पहला इनाम मिला। अध्यापकों ने उसकी खूबतारीफ की।
मेवा को केवल ऊँची कूद में ही तीसरा इनाम मिल सका। बाकी सब में फिसड्डी रह गया। छमाही परीक्षा में भी वह फेल हो गयाथा। हर चीज में अपने पीछे रह जाने का उसे इतना दुख नहीं हुआ, जितना सेवा की तारीफ सुनकर हुआ। वह जल-भुन गया और मन हीमन सेवा को नीचा दिखाने की तरकीबें सोचने लगा।
इसका मौका भी उसे जल्दी ही मिल गया। एक दिन सेवा पैदल स्कूल जा रहा था। गाँव और स्कूल के बीच एक नदी पड़ती थी।नदी पर पुल था। पुल काफी पुराना था। जगह-जगह उसकी रेलिंग टूटी हुई थी। इस समय सेवा उसी पुल पर से गुजर कर स्कूल जा रहा था।उसी समय पीछे से घंटी बजाते हुए अपने दोस्तों के साथ मेवा आ पहुँचा। मेवा को आते देख वह पुल पर बिल्कुल किनारे आकर खड़ा होगया। क्या करता ? पुल से बाहर भागने की जगह भी नहीं थी।
सेवा को इस तरह खड़े देखकर वे सब खिलखिलाकर हँस पड़े। मेवा उसके बिल्कुल बगल से निकला और साइकिल पर से हीकसकर एक लात सेवा की कमर पर जड़ दिया। लात का वार इतना भरपूर था कि सेवा सम्भल नहीं पाया। लड़खड़ा कर नदी में गिर पड़ा।नदी का बहाव काफी तेज था। सेवा एक बार तो नदी की गहराई में बिल्कुल नीचे चला गया, लेकिन ऊपर आते ही हाथ पैर चलाने लगा। वहतैरना जानता था। धीरे-धीरे किनारे की ओर बढ़ने लगा।
मेवा और उसके दोस्त साइकिलों से उतर कर तमाशा देख रहे थे। तालियाँ पीट-पीटकर हँस रहे थे। सेवा कुछ देर में तैरकर बाहरआ गया। वह ठंड से काँप रहा था। कपड़े तो सब भीग ही गये थे, बस्ते की सारी काँपी-किताबें भी भीग गई थीं। इस हालत में स्कूल तो जानहीं सकता था। दुखी मन से घर की ओर लौट पड़ा। मेवा और उसके दोस्त उसे इस तरह लौटते हुए देखकर बहुत खुश हुए।
गनीमत यही हुई कि सेवा पुल के पूरब तरफ गिरा था। अगर पश्चिम तरफ गिरता तो बच पाना मुश्किल हो जाता, क्योंकि इसतरफ बहुत गहरी भँवर थी। वहाँ हर समय पानी खूब तेजी से घूमता रहता था। उसमें जो फँस गया, वह आज तक जिन्दा नहीं बचा। मेवाकी आज की यह हरकत जानलेवा थी। इससे सेवा को बहुत दुख हुआ, लेकिन उसने कहीं कोई शिकायत नहीं की। न घर में, न स्कूल में। वहरोज की ही तरह स्कूल आता-जाता रहा।
इसके कुछ दिन बाद एक घटना अपने आप हो गई। मेवा और उसके दोस्त स्कूल से लौट रहे थे। वे बीचो-बीच पुल से गुजर रहे थे।उसी समय पता नहीं कहाँ से सामने से एक मरकहा बैल उछलता-कूदता आ गया। वह रस्सी तुड़ाकर आया था। गुस्से से फुँफकार रहा था।मेवा और उसके दोस्त यह मुसीबत देखकर घबड़ा गये। बैल से बचने की कोशिश करने लगे। किनारे की ओर साइकिलें लेकर भागे। बैल तोफुँफकारता हुआ उस पार निकल गया, लेकिन मेवा अपने को सम्भाल नहीं पाया। वह हड़बड़ाहट में साइकिल सहित नदी में जा गिरा।जिधर मेवा गिरा था, उस तरफ भँवर थी। वह उसी भँवर में साइकिल सहित फँस गया। यह देखकर मेवा के दोस्तों के होश उड़ गये। वेबचाओ-बचाओ करके शोर मचाने लगे। कुछ और लोग इकट्ठा हो गये। सभी हाय-हाय कर रहे थे। भँवर में कूदने की हिम्मत किसी की नहींथी।
उसी समय सेवा भी स्कूल से लौट रहा था। पुल पर भीड़ देखकर वह और तेजी से लपका। वहाँ झाँककर देखा तो सन्न रह गया।उसने एक पल कुछ सोचा, फिर बस्ता उतार कर रख दिया। परन्तु जैसे ही कूदने चला, वैसे एक आदमी ने उसे पकड़ लिया। उस आदमी नेकहा- ”तुम पागल हो गये हो क्या ? क्यों अपनी जान देना चाहते हो ? इस भँवर में फँस कर कभी कोई जिन्दा नहीं बचा। वह तो मर ही रहाहै, तुम क्यों मुफ्त में अपनी जान देने जा रहे हो ?“
सेवा के पास यह सब सोचने का समय नहीं था। उस समय एक-एक पल कीमती था। उसने उस आदमी को झटक दिया और नदीमें कूद पड़ा। सब लोग हक्का-बक्का रह गए। मेवा के दोस्त भी अवाक् रह गये। सेवा तो जानबूझ कर मौत के मुँह में कूद पड़ा। मेवा कोबचाने के चक्कर में वह भी उसी भँवर में पड़कर नाचने लगा। हाथ-पैर चलाने की सारी कोशिशें बेकार हो रही थीं। लेकिन सेवा ने हिम्मतनहीं हारी। कुछ पलों की कोशिश के बाद उसकी मुट्ठी में मेवा के बाल आ गये। अब सेवा उसके बाल खींचते हुए बाहर निकलने की कोशिशकरने लगा। लेकिन जैसे ही वह निकलने के लिए जोर लगाता, भँवर फिर उसे समेटकर नीचे गिरा देती। मेवा तो अब तक बेहोश हो चुकाथा। सेवा को भी ऐसा लगने लगा था कि अब वह नहीं बच पाएगा। हाथ-पैर जवाब देने लगे थे। आखिरी बार उसने फिर एक कोशिश की।शरीर की पूरी ताकत लगाकर बाहर की ओर उछाल मारी। और इस बार वह भँवर से बाहर निकल आया। पुल पर खड़े लोगों को भी आशाबँधी। वे साँस रोके यह सब देख रहे थे।
सेवा काफी थक चुका था। वह धीरे-धीरे तैरकर मेवा को खींचते हुए किनारे की ओर बढ़ने लगा। लोगों की भीड़ भी पुल से उतर करनदी के किनारे इकट्ठी हो गई। कुछ ही देर में सेवा, मेवा को खींचते हुए किनारे आ गया। मजे की बात यह थी, कि मेवा की साइकिल उसकेपैर में फँस गई थी। वह भी साथ में निकल आई थी। अब तक लोगों की भीड़ काफी बढ़ गई थी | गाँव से भी काफी लोग आ गये थे। मेवा तोबेहोश था ही, सेवा की भी हालत खराब थी। लोगों ने मेवा को उल्टा करके दबा-दबा कर उसके शरीर से पानी निकाला।
काफी देर बाद मेवा को होश आया। उसने अपने चारों ओर देखा। काफी लोग खड़े थे। उसके माँ-बाप भी थे। एक तरफ उसके दोस्तथे। दूसरी तरफ सेवा खड़ा हुआ मुस्करा रहा था। मेवा धीरे से उठा और सेवा से चिपटकर सुबक-सुबक कर रोने लगा। उसके दोस्त भी मुँहलटकाए आँसू टपका रहे थे। उस दिन से मेवा, सेवा को अपने भाई की तरह मानने लगा।
-०-
No comments:
Post a Comment