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Sunday, 15 December 2019

जान बची तो लाखों पाये (बालकहानी) - डॉ. सुधा गुप्ता 'अमृता'


जान बची तो लाखों पाये
 (बालकहानी)

मटरू चूहा बिल्कुल अपने नाम के अनुरूप ही था । उसकी माँ मटककली उसे रोज प्यार से समझाती , बाहर इस तरह घूमने से सौ तरह के खतरे हैं । पर , मटरू हँसते हुए कहता - खतरों से खेलना तो मेरा शौक है , घूमो - फिरो मस्ती से , डर - डरकर भी क्या जीना ? मटककली कहती - डर - डरकर नहीं , किन्तु संभल - संभलकर चलना मेरे प्यारे मटरू । बिल्ली मौसी , कुत्ता चाचा , सर्प दादा , तो कहीं चील मौसी , कौए भाई और तो और रामे बुआ दिन भर यही सोचती हैं कि हम कब उनके झांसे में आ जायें और उनके पिंजड़े में फंस जाएं । वैसे तो ये सब अपंनी - अपनी जगह सही हैं किन्तु , हमारी तो जान के दुश्मन हैं । मटरू उछल - कूद करता हुआ कहता - ठीक है माँ , संभल - संभलकर चलूँगा । रामे बुआ के झांसे में नहीं आऊंगा । मटककली कहती - खूब समझदारी से काम लेना , हरियल तोते की तरह रट्टू मत बनना । उसे खूब सिखाया गया था , शिकारी आता है , जाल फैलाता है , दाने बिखेरता है , हमें जाल में नहीं फंसना चाहिए । किन्तु वह दानों की लालच में फंस ही गया था । मटरू फिर उछला , रामे बुआ पिंजड़ा रखेंगीं , मुझे उसमें नहीं फंसना है । मटककली बोली - हाँ ठीक है , होशियार रहना । मटककली को नींद आ रही थी , वह बिल में जाकर सो गई । किन्तु , नटखट मटरू को नींद कहाँ ? वह तो दिन में सोकर नींद पूरी कर लेता और रात में ऊधम - मस्ती करता । कहाँ क्या खाने को रखा है , क्या काटना है , क्या कुतरना है , बस इसी धमाचौकड़ी में लगा रहता ।
इन दिनों उसे कुछ अजीब शौक लग गया था । वह रामे बुआ की ड्रेसिंग टेबल पर क्रीम - पावडर की खुशबू का आनंद उठाने लगा था । फेसक्रीम की डिब्बियों में अपने नुकीले दांतों से छेद कर लेता , क्रीम की खुशबु में नहाता फिर फेस पावडर के डिब्बे में छेद करके उसकी खुशबू पूरे शरीर पर लपेट लेता । एक दिन तो उसने क्रीम का लेप लगाया ही था कि फेस पावडर उस पर गिर गया और वह काले चूहे से सफ़ेद चूहा दिखने लगा । आईने में अपना चेहरा देखकर वह बहुत प्रसन्न हुआ । इतने में ही रामे बुआ ने प्रवेश किया । वह चूहे को देखकर घबरा गईं - अरे बाप रे , सफ़ेद चूहा ! फिर अपनी ड्रेसिंग टेबल पर नजर दौड़ाई , उन्हें समझते देर न लगी । क्रीम पावडर के सारे डिब्बे छिद्रयुक्त हो गये हैं । पूरी ड्रेसिंग बिखरी पड़ी है । उन्होंने ठान लिया , अब इस मटरू की खैर नहीं । मटरू काले से सफ़ेद होकर अपनी माँ के पास बिल में घुसा तो वह भी घबरा गई । मटरू बोला - खुशबू में नहाओ माँ और आराम से सोओ ।
रामे बुआ ने ड्रेसिंग के पास ही रात में पिंजड़ा रख दिया और उसमें बढ़िया मीठी गुड़ की रोटी का टुकड़ा फंसा दिया । फिर आराम से सो गईं । मटरू आया , मीठी गुड़ की रोटी देखकर उसके मुंह में पानी आ गया । पहले तो उसने जी भर खुशबू का आनंद लिया फिर खाने के लिए लपक पड़ा । फिर क्या था , फंस गए मटरू राम पिंजड़े में । तब माँ की सीख - सिखावन याद आई । किन्तु अब पछताये होत क्या ? सबेरा हुआ , रामे बुआ ने सबसे पहले अपनी ड्रेसिंग टेबल का मुआयना किया और पिंजड़े में फंसे मटरू राम को देखकर उछल पड़ीं । अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे । मजा आया मटरू ? खूब तूने मेरा नुक्सान किया है , अब चल मेरे घर से दूर , समझे । रामे बुआ ने पिंजड़ा उठाया और घर से थोड़ी दूर ले जाकर पिंजड़ा खोल दिया । फिर वापस आ गईं ।
मटरू ने इधर - उधर देखा , बिल्ली मौसी पास में बैठी थी । वह मटरू पर लपक पड़ी और उसे मुंह में दबाने वाली ही थी कि कुत्ता उस पर झपट पड़ा । मटरू बिल्ली के मुंह से छूट गया । वह भाग ही रहा था कि ऊपर से उड़ती चील ने झपट्टा मारकर मटरू को पकड़ लिया और उड़ चली । तभी एक दूसरी चील ने उस पर झपट्टा मारा तो मटरू नीचे गिरा धड़ाम से एक बगीचे की मखमली घास पर । उसने राहत की सांस ली ही थी कि बगीचे में छिपा सर्प बाहर आया और मटरू को दबोच लिया । तभी पेड़ के पीछे से नेवला निकला और उसने सर्प पर हमला बोल दिया । सर्प और नेवले की लड़ाई में सर्प के मुंह से मटरू छूट गया और वह बेतहासा भागा .... भागा ,,,,,भागा और भागकर अपनी माँ के पास बिल में घुस गया । वह जोर - जोर से हांफ रहा था , बोला - ' जान बची सो लाखों पाये ' । माँ मटककली ने कहा - ' लौट के बुद्धू घर को आये ' । माँ बेटे दोनों गले से लिपट कर प्यार करने लगे ।
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डॉ. सुधा गुप्ता 'अमृता'
(राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित)
दुबे कालोनी , कटनी 483501 (म. प्र.)
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