ईमानदारी
(आलेख)
आज के दौर में लोगों के अंदर से ईमानदारी और बर्दाश्त खत्म हो गई है। एक दूसरे की भावनाओं को समझना तो दूर एक दूसरे की बातें तक नहीं समझना चाहता कोई। ज़रा ज़रा सी बातों में अहम को बीच में लाना और मनमुटाव शगल बन गया है। कोई यह जानने तक का प्रयास नहीं करना चाहता कि घटित घटनाओं के पीछे क्या कारण है। भाईचारा लगभग खत्म हो गया है और तेरा-मेरा तक सीमित होते जा रहे हैं हम सभी। इन सभी का कारण भी कहीं ना कहीं इर्द गिर्द जमा वह लोग होते हैं जो व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्धि के लिए अपने आप को आप का हितैषी और दूसरों को आपका शुभचिंतक ना होना बताते रहते हैं। समाज भौतिक रूप से विकसित और वैचारिक रूप से अविकसित दिखाई दे रहा है।
सूरज के ढलने पर अंधेरा बहुत खुश हो जाता है फूला नहीं समाता है। वह ये कतई भूल जाता है कि सूरज कहीं और उजाला फ़ैला रहा होता है उस वक़्त । किसी की राह में रोड़े अटकाए जाने पर जीवट राही नया रास्ता बना लेते हैं। वो किसी बात का मलाल नहीं करते हैं बल्कि रोशनी की तरफ कदम बढ़ा लेते हैं।
आज हम ये मानना ही नहीं चाहते कि हमारे अलावा कोई और भी कुछ अच्छा कर सकता है। सराहना तो दूर की बात है हम अलग अलग तरह से उनकी आलोचना करने में लग जाते हैं। हमे अपना कद बड़ा और अपने आगे सब बौने नजर आते हैं। लेकिन ऐसा करते वक़्त हमे ये ध्यान ही नहीं रहता कि हम अकेले भी होते जाते हैं।
इसलिए किसी से जलिए मत और ना ही इस जलन का धुआं अपनी आंखों में भरने दीजिए। अगर आप ऐसा करेंगे तो साफ कभी नहीं देख पाएंगे। आपको चेहरे, परछाई और परछाई, चेहरे की तरह नजर आने लगेंगे। इसलिए हमे अपने दिल की सुनने के साथ ही साथ बुद्धि और विवेक का इस्तेमाल भी करना चाहिए ताकि किसी की आड़ लेकर कोई खुद का हित ना साध सके और आप खुद को ठगा हुआ ना महसूस करें। खुद के साथ ईमानदार रहकर सत्य को स्वीकार करना और हर किसी के अस्तित्व का सम्मान करना सीखिए।
ईमानदारी बनाए रखिए....
पता-
शिप्रा खरे
लखीमपुर (उत्तरप्रदेश)
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