डर डॉ. ज्योति थापा
(कविता)
डर लगता है
उस रास्ते गुजरने से
जहाँ अभी भी घना अंधेरा छाया है
इस्ट्रीट लाइट तो है
जो रास्ता उजियारा करता हैं
लेकिन रास्ते किनारे का अंधेरा दूर नहीं कर पाता
डर लगता है
वेशी दरिंदों के साये से
पता नहीं किस ताक पर हो
कब हमला कर दे आप पर
डर लगता है
उन ताकती नजरों से
जो आपके ओढ़नी के अंदर तक झाकती है
कहीं फिसल न जाए उनका इमान
इस बेइमानी से डर लगता है
डर लगता है
उन जानवर के सासों की आवाज से
जिसके नीचे आपकी चीख दब जाती है
यहाँ करते हैं वादे कई नारी सुरक्षा की लेकिन
फिर प्रियंका रेड्डी जैसा किस्सा सामने आ जाता है
-०-
पता
डॉ. ज्योति थापा
काछाड़ (असम)
अत्यंत मार्मिक कविता,👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏
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