बात छोटीसी मगर बहुत मोटी सी
(कहानी)
विधा शादी के बाद पढ़ना नहीं चाहती थी। सोचती अरे शादी तो कर ली, अब कौन आगे पढ़े ? मगर उसे क्या पता था कि उसकी सासू मां उसको एक अध्यापक के रूप में देखना चाहती थी। उसके पिता समान ससुर जी ने उसका दाखिला कानपुर के एक B.ed कॉलेज में कराया। विधा जिसको किसी मुसीबत से कम ना समझती थी थी समझती थी थी । उसे लगता हे भगवान पढ़ाई उसका अभी भी पीछा नहीं छोड़ती । धीरे-धीरे उसने B.Ed की क्लासेस जा जाना शुरू किया ,तभी से पता चला कि वह गर्भवती है । बस तो क्या था उसने मनन से कहा कहा से कहा "अरे, अब इस हालत में कौन कॉलेज जाता है, वहां अपना मजाक थोड़ी ना बनवाना है, अब मैं नहीं करूंगी।" मनन ने कहा देखो पापा मम्मी की मेहनत के पैसे तुम्हारी इस B.Ed में लगे हैं हैं ,तो B.Ed तो करनी होगी और अपना भविष्य सोचो ना ना, तुम कितनी अच्छी बातें करती हो ,इतनी ही अच्छी अध्यापिका भी बनोगी । विधा सोचती मैंने तो सोचा था बस अब इससे छुटकारा मिलेगा मगर नहीं अभी भी यह गले में घंटी की तरह रहेगी । जैसे तैसे वह उस अवस्था में B.Ed करती है मनन का ट्रांसफर कानपुर से मुंबई हो गया था तो मनन को मुंबई रहता ।विधा ने लाख कोशिश की मगर वह मुंबई ना जा सकी सकी, क्योंकि वह B.Ed रेगुलर कर रही थी ।
उसने लाख रोना-धोना मचाया अपनी सहेलियों को बताया ,तब उसकी सहेलियों ने कहा" अरे यह कर लो बाद में नौकरी करना या ना करना तुम्हारा मन ,कम से कम 1 डिग्री तो तुम्हारे पास डिग्री डिग्री कम 1 डिग्री तो तुम्हारे पास डिग्री 1 डिग्री तो तुम्हारे पास डिग्री तो तुम्हारे पास होगी, अभी तो तुम्हारी पूरी फैमिली तुम्हारा सपोर्ट कर रही है सपोर्ट कर रही है ,सो कर लो ।
वह दिन भी आ गया जब उसके बेटे सिद्धार्थ का जन्म हुआ । उसकी डिलीवरी मनन के पास मुंबई में हुए मगर उसे B.Ed की परीक्षा देने के लिए दोबारा कानपुर जाना था । सिद्धार्थ के जन्म के 3 महीने बाद उसे कानपुर लौटना पड़ा लौटना पड़ा । वहां वह अपने सास ससुर के के साथ सिद्धार्थ को लिए रहती थी ,उसके मन में लाख बार आया आया कि वह B.Ed छोड़ दे छोड़ दे छोड़ दे ,मगर वह ना कर पाई।
एक दिन उसने रोते हुए अपनी सासु मां को कहा कहा की वह अपने पति मनन के साथ मुंबई रहना चाहती है । तब उसकी सासु मां ने ने कहा " देखो मनन के साथ तो तुम हमेशा ही रहोगी तुम हमेशा ही रहोगी ,मगर जिंदगी का यह समय तुम्हारे लिए पछतावा भी बन सकता है और तुम्हारी पहचान भी ,इच्छा तुम्हारी है। मैं कल भी तुम्हारे साथ थी और और आज भी और हमेशा रहूंगी। लेकिन जो अकेला पन मैं ने सहा मैं नहीं चाहती तुम भी वह सब सहो। मैं चाहती थी कि मैं एक अच्छी अध्यापिका बनू। क्या बोलूं मगर उस समय परिवार की स्थिति दूसरी थी ,परंतु मैंने तुम्हारे लिए हमेशा यही सोचा कि मैं मेरी बहू को बेटी बनाऊंगी ,उसे पढ़ा लिखा कर उसके पैरों पर खड़ा उसके पैरों पर खड़ा करूंगी, जिससे उसे मेरी तरह घर में तनहा ना रहना पड़े । तुम रोज तैयार होकर, सुंदर सी साड़ी पहन स्कूल जाओ, सब लोग तुम्हारी पहचान से तुम्हें पहचाने, मेरी यही इच्छा है बाकी तुम्हारा मन जैसा तुम चाहो, मैं तुम्हारे निर्णय में तुम्हारे साथ हूं ।
उस दिन पहली बार विधा ने वह सब सुना जो उसने कभी ना कभी ना देखा ना सुना ,उसके बाद से उसने सच्चे मन से B.Ed करनी शुरू कर दी और मन ही मन अपनी सासू मां को लाख धन्यवाद दिया कि उनके रहते हैं रहते हैं उसकी B.Ed हुई । B.Ed में वह प्रथम स्थान पर रही तथा कुछ समय बाद एक अच्छी स्कूल में अध्यापिका नियुक्त हुई ।
जहां उसे बेस्ट टीचर अवार्ड भी मिला । अब जब यह सब याद करती है तो उसे अपनी सासू मां की वह बातें याद आती है कि अगर B.Ed ना करी होती तो वह शायद आज यहां ना होती। उसकी जिंदगी में उसके सास ससुर का बहुत बड़ा योगदान है जिसे वह शिरोधारा करती है तथा मनसे उनको शत-शत नमन करती है।
मेरे जीवन में मेरे सासु मा का बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने मेरा पूरा जीवन ही बदल दिया। जिसके लिए मैं उनकी दिल दिल से बहुत आभारी हूं और यह सभी और महिलाओं के लिए प्रेरणा है कि सासु मां को मां समझे क्योंकि वह सच में घर आने वाली बहू को बेटी ही बनाती हैं।
No comments:
Post a Comment