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Thursday, 6 August 2020

रंगीला सावन (कविता) - बलजीत सिंह

रंगीला सावन 
                (कविता)
       गरज-गरजकर आये बादल,
       हवा हिलाये पेड़ों की चोटी ।
       पंख फड़फड़ाने लगे परिन्दें  ,
       जब गिरी धरा पर बूंदें मोटी ।।

       चिड़ियां चहकी गदराई बेल  ,
       हवा-पानी का अद्भुत मेल ।
       सुरूर सावन का ऐसा छाया ,
       बिल से बाहर अजगर आया ।।
       बकरी-मुर्गा मुड़-मुड़ देखे ,
       कुत्ता खाये भीगी रोटी ।।
       पंख फड़फड़ाने लगे परिन्दें ,
       जब गिरी धरा पर बूंदें मोटी ।।

       गिलहरी सुने कोयल का गाना ,
       चूहा खाये छुप-छुपकर दाना ।  
       मोर मस्ती में हुआ मग्न ,
       तितली रानी का भीगा बदन ।
       आसमानी बिजली कड़कने पर ,
       जोर से भागी हिरण छोटी ।।
       पंख फड़फड़ाने लगे परिन्दें  ,
       जब गिरी धरा पर बूंदें मोटी ।।

       पानी बरसा फसल लहराई ,
       नदी-झरनों ने ली अंगड़ाई ।
       उठे सागर में लहरें तेज ,
       इंद्रधनुष की सतरंगी सेज ।।
       टूटी डाल पर थिरक-थिरककर ,
       नाच दिखाये बंदरिया खोटी ।।
       पंख फड़फड़ाने लगे परिन्दें  ,
       जब गिरी धरा पर बूंदें मोटी ।।
     
       गरज-गरजकर आये बादल,
       हवा हिलाये पेड़ों की चोटी ।
       पंख फड़फड़ाने लगे परिन्दें  ,
       जब गिरी धरा पर बूंदें मोटी ।।
-०-
बलजीत सिंह
हिसार ( हरियाणा )
-०-

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1 comment:

  1. हार्दिक बधाई है आदरणीय सुन्दर रचना के लिये।

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