वो चांदी की दीवार
(ग़ज़ल)
वो चांदी की दीवार गिराना भूल गये,
वादा करके भी प्यार निभाना भूल गये।
गैरों की बस्ती में आग लगाने वाले,
अपने ही घर में आग बुझाना भूल गये।
औरों का दामन धोते - धोते अक्सर वो,
अपना ही गहरा दाग़ मिटाना भूल गये।
एक उम्र कर्ज़ चुकाते गुजरी हो जिनकी,
वो बेटे घर का बोझ उठाना भूल गये।
जिसने दी निज कुर्बानी सीमा की खातिर,
वंश उसी के अब जान लुटाना भूल गये।
-0-वादा करके भी प्यार निभाना भूल गये।
गैरों की बस्ती में आग लगाने वाले,
अपने ही घर में आग बुझाना भूल गये।
औरों का दामन धोते - धोते अक्सर वो,
अपना ही गहरा दाग़ मिटाना भूल गये।
एक उम्र कर्ज़ चुकाते गुजरी हो जिनकी,
वो बेटे घर का बोझ उठाना भूल गये।
जिसने दी निज कुर्बानी सीमा की खातिर,
वंश उसी के अब जान लुटाना भूल गये।
पता:
गोविंद भारद्वाज
अजमेर राजस्थान
गोविंद भारद्वाज
अजमेर राजस्थान
उत्तम चिंतन
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