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Saturday, 7 November 2020

दीप कहाँ जलता (कविता) - सुनीता मिश्रा



दीप कहाँ जलता

(कविता)

तिल कर बाती बढ़ती
अन्धकार से पल पल लड़ती
घूंट घूंट भरती तेल सांस मे
दीप कहाँ जलता ,बाती है जलती।

गहन तिमिर,पथ अन्धियारा
जलती  जाती कर लौ उजियारा
चाँद छुपा  रात की गोदी मे
बाती करती जग रोशन सारा।
अमर दीप,बाती ने जीवन हारा।

सब दीपक का गुण गाते
बाती का त्याग समझ न पाते ।
दीपक को जीवन देकर
प्राण त्यागती हँसते हँसते ।
दीप कहाँ जलता, बाती है जलती।

-०-
पता
सुनीता मिश्रा
कोलार, भोपाल (मध्यप्रदेश)

-०-



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1 comment:

  1. बाह! बहुत सुन्दर कविता है। हार्दिक बधाई है मैम!

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