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Saturday, 7 November 2020

"कहीं ना कहीं कुछ" (आलेख) - भावना ठाकर

"कहीं ना कहीं कुछ"

(आलेख)

खिड़की आत्मा की खोलते ही दिखेगी हरसू हर नज़ारे में जीवंत सी परछाईयां, महसूस करो तो हर चीज़ों के भीतर कोई गहन अर्थ छिपा होता है। बादलों के झुरमुट में कुछ बूँदें छुपी होती है तड़ीत के प्रहार मे रोशनी छुपी होती है।
जैसे दिल के गुल्लक में एहसासों की ज़मीं छुपी होती है। या मन की संदूक में भावों की बारिश छुपी होती है। कभी-कभी मुस्कान के भीतर आहों की ख़लिश छिपी होती है, तो कभी अश्कों में खुशियाँ अनमोल छिपी होती है।
महसूस करो कभी अपनों के मौन में छिपे चित्कार को या अनकही बातों में छिपे असबाब को। कहीं आबशार की गति में धुंधुआता वेग छिपा होता है और पर्वतों के भीतर आबशारों की नमी छिपी होती है। उपनिषद में गीता का सार छिपा होता है, तो मेघदूत में कालिदास की कल्पनाओं का निनाद छिपा होता है। होता है ना हर इंसान के भीतर एक बालक छिपा हुआ, और साँसों की लय के भीतर छिपी मौत की रागिनी होती है। धरा के भीतर धधकता ज्वालामुखी छिपा होता है और चाँद के भीतर पृथ्वी की छाया छिपी होती है। गंगा की लहरों में श्रद्धा की पावकता छिपी होती है और जमुना में ताज की परछाई छिपी होती है। छुपी होती है हर शै में कहीं ना कहीं रानाइयां ज़िंदगी की बहुत सी चीज़ें छुपी होती है हर चीज़ के भीतर कहीं ना कहीं। मन की आँखों से नकारात्मकता का झीना पर्दा हटाकर देखो दुन्यवी गतिविधियों में सुंदरता का परिमाण छिपा होता है।

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पता
भावना ठाकर
बेंगलोर (कर्नाटक)

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1 comment:

  1. भावना जी बहुत सुंदर चिंतन।

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