उड़ चला,
आज मैं उड़ चला
दूर चला बहुत दूर चला।
आजाद हो गया मैं
पिंजरे की कैद से,
आजाद हो गया
रोज की घुटन से,
अपनी मंजिल को
पाने के लिए आज
मैं चल पड़ा।
एक नए पथ पर
निकल पड़ा,
एक नई दुनिया में
चल पड़ा,
जहां सब कुछ नया होगा,
पुराने रास्तों को छोड़ चला,
अपने अस्तित्व को पहचाने
अब चला पड़ा
अपने आपको को पाने
आज निकल पड़ा,
अपनी कर्तव्यनिष्ठा को
निभाने चला पड़ा।
-०-
पता:
बहुत बढ़िया कविता ...
ReplyDeleteसाधुवाद 🙏
शुभकामनाएं,
डॉ. वर्षा सिंह
बाह! हार्दिक बधाई है आदरणीय !
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteबहुत खूब बधाई आपको सुन्दर प्रस्तुति के लिए धन्यवाद आदरणीय महोदय जी आभार है आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
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